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________________ 1st INTERNATIONAL JAIN CONFERENCE ।। श्री जिनाय नमः ।। भगवान महावीर के सिद्धान्तों की उपयोगिता तीर्थंकरों ने सर्वज्ञ होने के बाद सनातन और शाश्वत सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर विश्व को एक ऐसी समन्वित जीवन शैली दी जो आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों क्षेत्रों में उत्कर्षता प्राप्त कराती है। त्याग और भोग के मध्य संतुलित जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कालचक्र का सर्वोपरि आयाम, हरपल का लेखा जोखा रखने की महावीर की अनुशंसा, तपस्या द्वारा शरीर और मन का विकास, निश्चित समय में सुपाच्य भोजन खाकर शरीर को सही ऊर्जा प्राप्त कराके दैनिक जीवन में उपलब्धियों की प्राप्ति। शासन तथा प्रबन्धन की सफलता के लिये प्रखर सहभागी लोगों के ग्रुप का निर्माण जो भगवान महावीर ने ज्ञान के प्रसार के लिये आज से २६०० वर्ष पहले भी किया था, ध्यान की प्रक्रिया द्वारा मानसिक विकास को तीव्र गति प्रदान करना, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पंच महाव्रतों के सिद्धान्तों और अनेकान्तवाद की उपयोगिता, ये सभी आवश्यकताएँ भगवान महावीर ने २६०० वर्ष पहले ही समझ ली थी और उसके लिये व्यावहारिक ज्ञान ही नहीं बल्कि उसको असली जामा पहना कर विश्व के सामने रखा। हर युग में क्रान्तिकारी आते हैं, रास्ता दिखाते हैं, विरोध भी होता है, लेकिन जब ये क्रान्तिकारी कदम समय की कसौटी पर खरे उतरते है तो फिर एक होड़ उठती है उनको अपनाने की। २६०० वर्ष के अन्तराल में हमने इन सिद्धान्तों का उदयमान प्रभाव देखा और विरोध भी। समय की कसौटी पर ये इतने खरे उतरे कि ये केवल परिवार, समाज और राष्ट्रों के लिये ही नहीं वरन् उद्योग और व्यापार के लिये भी एक प्रभावी आचार संहिता का रूप ले चुके है। हमारी पीढ़ी का यह उत्तरदायित्व है कि वह आगे बढ़े और भगवान महावीर के इन सिद्धान्तों के पीछे छिपी हुई इस विचारधारा को और सृजनात्मक प्रवृत्तियों को खोज निकालने का प्रयास करे जिनके कारण ये सिद्धान्त आज सार्वभौमिक बन गये हैं। धन्यवाद। डॉ. लता बोथरा सम्पादक : तित्थयर जैन भवन पी-२५, कलाकार स्ट्रीट कोलकाता - ७०० ००७ दूरभाष : ९८३१०७७३०९ e-mail : latabothra13@yahoo.com website : www.latabothra.com
SR No.032684
Book Title1st Jain International Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaina Jito Shrutratnakar
PublisherJaina Jito Shrutratnakar
Publication Year2020
Total Pages40
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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