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मधेया
गधैया गौत्र की उत्पत्ति
___ ऐसा कहा जाता है कि चन्देरी नगर के राठौर वंशीय राजा खरहत्थसिंहजी ने खरतर गच्छाचार्य श्री जिनदत्तसूरि से जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की। भापके भैंसाशाह नामक एक नामांकित पुत्र हुए। इन भैंसाशाहजी के पांचवे पुत्र सेनहत्य का लाड़ का नाम गहाशाहजी था। इन्हीं गद्दाशाहजी की सन्ताने आगे जाकर गधैया के नामसे मशहूर हुई और धीरे १ यह नाम गौत्र के रूप में परिणत हो गया। तभी से गहाशाहजी के वंशज गधैया के नाम से मशहूर हैं।
सेठ जेठमल श्रीचन्दजी गधैया संवत् १८९६ में सेठ जेठमलजी अपने काकाजी सेठ मानमलजी के साथ नौहर (बीकानेर स्टेट) से यहाँ भाये । आपका जन्म संवत् १८४८ में नौहर ही में हुआ। आप सरदारशहर भाये और अपना घर स्थापन किया उसी घर में आजतक आपके वंशज रहते आ रहे हैं। संवत् १९०७ में भाप
च बिहार (बंगाल) में गये और वहाँ जाकर अपनी फर्म स्थापित की तथा ९ वर्ष तक लगातार वहीं रहकर आप संवत् १९१६ में वापस सरदारशहर आये। आपको वहाँ पहुँचने में ५॥ माह लगे थे। आपके श्रीचन्दजी नामक एक पुत्र हुए। इसी समय से आपको साधु-सेवाओं से बड़ा प्रेम हो गया और आपने हमेशा के लिये रात्रि भोजन करना बंद कर दिया। इसके कुछ समय पश्चात ही आपने केवल भाठ दयों का भोजन करना शेष रक्खा था। रात्रि में आप कम्बल पर शयन करते थे। लिखने का मतलब यह है कि धनिक और श्रीमान् होते हुए भी आपने अपना जीवन त्यागमय बना लिया था। संवत् १९२४ में पत्नी के होते हुए भी आपने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। आपका स्वर्गवास संवत् १९५२ के वैशाख में हो गया। आपका परिवार श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी संप्रदाय का अनुयायी है।
सेठ श्रीचन्दर्जा-आपका जन्म संवत् १९१९ में हुआ। संवत् १९३७ में व्यापार के लिये कलकत्ता गये और वहाँ जाकर अपनी फर्म पर, जो पहले ही संवत् १९२९ में स्थापित हो चुकी, कपड़े का व्यापार प्रारंभ किया। इस व्यापार में आपने अपनी बुद्धिमानी एवम् व्यापार कुशलता से लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। यह कार्य आप संवत् १९६० तक करते रहे। इसके पश्चात् आप अपने व्यापार का भार अपने पुत्र सेठ गणेशदासजी एवम् सेठ बिरदीचन्दजी को सौंप कर व्यापार से अलग हो गये तथा
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