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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास इस परिवार में मनिहारी (विसाती) का म्यापार आरम्भ किया। आपके भाई धनीरामजी केलाला दीनानाथजी लाला लालचन्दजी, बनारसीदासजी और कस्तूरीलालजी नामक ५ पुत्र हुए। आप सब भाई सज्जन व्यक्ति हैं तथा आपने अपने धंधे को उन्नति दी है। आपकी दुकान कसूर में अच्छी प्रतिष्ठित मानी जाती है । लाला कस्तूरीमलजी ने श्री आत्मानन्द जैन गुल्कुल गुजरानवाला में शिक्षा पाई है तथा सन् १९३० में 'न्यायतीर्थ' की परीक्षा इन्दौर से पास की है। आप इस समय अपनी होयजरी फेक्टरी का संचालन करते हैं। इस परिवार में मिनखीराम धनीराम के नाम से जनरल मर्चेटाइज का म्यापार होता है। • . लाला खानचन्दजी दूगड़, रावलपिण्डी इस परिवार की आर्थिक स्थिति लाला खानचन्दजी के पिता लाला जीवाशाह के समय तक साधारण श्री। काला जीवाशाहजी के लाला खानचंदजी, लाला खजानचंदजी, लाला ज्ञानचंदजी और लाली रामरिखामजी नामक चार पुत्र हुए। इनमें से काला खानचंदजी ने इस खानदान की दौलत और इजत को खूब बढ़ाया । इन्ने कन्ट्राक्टिङ्ग बिजिनेस भारम्भ करके उसमें बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की। आप श्री जैन सुमति मित्र मण्डल रावलपिण्डी प्रथम सभापति रहे । जैन कना पाठशाला की स्थापना में भी आपने बहुत मदद दी। इसी प्रकार और भी पब्लिक कार्यों में भाप सहयोग देते रहते थे। आपका देहान्त सन् १९२ में हुआ । मापके लाला सागरचन्दजी, छाला भगतरामजी, लाला नौवतरामजी, लाला सांईदास तथा लालाचमनलाळजी नामक पाँच पुत्र हुए । इस समय इस खानदान में लाला खानचन्द एण्ड सन्स के नाम से जनरल मर्चेण्टाइज का व्यापार होता है। लाला सागरचंदजी तथा लाला भगतरामजी बड़े धार्मिक और उत्साही सजन है। रावलपिण्डी में इस खानदान की अच्छी प्रतिष्ठा है। पहखानदान जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी भानाय का उपासक है। __लाला के. सी. निहालचन्द जैन, रावलपिण्डी इस खानदान के पूर्वज बाला गण्डामलजी पसरूर में रहते थे। लाला गण्डामली की पसरूर में बहुत इजत थी। इनके लाला बोगाशाहजी और लाला गुरुदित्ताशाहजी नामक दो पुत्र हुए। लाला गुरुदिता. शाहनी के पुत्र हुए। इनमें से सबसे छोटे लाला निहालचंदजी ने करीब २५ साल पहले रावलपिन्डी में आकर गोटा किनारी का कारवार शुरू किया। सन् १९१६ में हिन्दू मुसलमानों के दंगे के समय जब रावलपिण्डी में चारों ओर अग्निकाण्ड हो रहे थे तब इन्होंने फायर ब्रिगेड के कप्तान होकर जनता की बहुत सेवा की थी । आपको गक्टरी और इंजीनियरिश का बहुत शौक था । आपका अन्तकाल संवत् १९४३ में हुभा । आपके बड़े भाई काला भीमसेनजी और लाला खुशालचन्दजी का स्वर्गवास मशः १९७२ और १९६०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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