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आसवाल जाति का इतिहास
जी हुए। आपका कुटुम्ब फगुवाड़ा में निवास करता है। लाला हंसराजजी फगुवादा के प्रतिडित मज्जन हैं।
लाला गोपीचन्दजी दूगड़, एडवोकेट-अम्बालाशहर
भापका जन्म ईसवी सन् १८७८ में अम्बालापाहर (पंजाब) में हुभा। आप के पूर्वज केशरी (जिल अम्बाला) से आकर यहां बसे थे। अतः आपका वंश 'केवारी वाला' नाम से प्रसिद्ध है। आपके पिताजी का मौम लाला गेंदामलजी था।
जब पचास वर्ष पहले जैन समाज में शिक्षा का अभाव था उस समय भापको बी. ए. तक, की संन्च शिक्षा दिलाई गई। जगद्विख्यात स्वामी रामतीर्थजी से कालेज में भाप गणित पदा करते थे। प्रेज्युएट होने के पश्चात् आपने वकालात की परीक्षा पास की और अम्बालाशहर में ही आप काम करने लगे। एक सुयोग्य वकील होते हुए भी आप प्रायः मुले मुकदमे नहीं लिया करते थे। इसीलिये दूसरे वकील और न्यायाधीश आपकी बात पर पूरा २ विश्वास किया करते थे।
सार्वजनिक कार्यों में आप पूरा २ भाग लिया करते थे। हिन्दू सभा के भाप मुख्य सदस्य थे। स्थानीय नागरी प्रचारिणी सभा, बाय स्काउट एसोसियेबान, बार रूम के आप कोषाध्यक्ष थे।
लाला गोपीचंदजी की सबसे बड़ी सेवा शिक्षा प्रचार की है। भाप श्री भास्मानन्द जैन हाईस्कूल अम्बालाशहर के २५ वर्ष तक मैनेजर रहे। इस संस्था की नींव को सुद्ध करने के लिये आपने मद्रास प्रान्त तक भ्रमण करके धनराशि एकत्र की तथा समय २ पर भाप पथाशक्ति आपने अपने पास से दिया और औरों से भी दिलाया । आप मात्मानन्द जैन महासभा पंजाब के सभापति थे। श्री हस्तिनापुर जैन श्वेताम्वर तीर्थ कमेटी के भी भाप ही सभापति थे। श्री भस्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब (गुजरांवाला) के ट्रस्टी और कार्यकारिणी समिति के मुख्य सदस्य थे। आपके निरीक्षण और आपकी सहयोगिता से इन संस्थाओं ने अच्छी समाज सेवा की है और दिनों दिन उन्नति कर रही है। आप श्री आत्मानन्द जैन सभा अम्बालाशहर के प्रधान रहे हैं। स्कूलों में पढ़ाये जाने वाली इतिहास की पुस्तकों में जैन धर्म के विषय में जो कुछ भन्ड बन्द लिखा जाता रहा है उसका निराकरण कराना एक सहज बात नहीं थी, परन्तु मापने बहुत परिश्रम से उसमें भी सफलता प्राप्त की। श्री आत्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसायटी में आपके प्रधानत्व में १८ वर्ष तक जैन धर्म का जो प्रचार जैनियों तथा सर्वसाधारण में किया है, यह समाज से छिपा नहीं है।
उमर भर पाश्चात्य शिक्षा के वातावरण में रह कर भी भाप अपने जैनधन एवम् जैन संस्कृति को न भूले । भापका स्वर्गवास तीन मास की बीमारी के पाचात् ११.२.१४ को शिवरात्री के दिन होगया ।