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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व प्रकटी बाजी बाज, अकल प्रमाणो इन्दड़ा ॥ ४ ॥ पड़तों घेरो जोधपुर, अड़तां दला अथंभ ॥ ५ ॥ आप डींगता इन्दड़ा, थे दीयो भुज थंभ ॥ ६ ॥ इन्दा वे असवारियां, उण चौहटे श्राम्बेर ॥ ७ ॥ घिण मंत्री जोधाणरा, जैपुर कीनी जेर ॥ ८ ॥ पोडियो किण पाशाक सूँ, जगां केड़ी जोय ॥ ६ ॥ गेह कटे हैं जीवतां, होड़ न मरता होय ॥ १० ॥ बैरी मारण मीरखा राज काज इन्दराज ॥ ११ ॥ में तो सरणे नाथ के, नाथ सुधारे काज ॥१२॥ हमने सिंघी इन्द्रराजजी के महान् जीवन पर थोड़ा सा प्रकाश डालने की चेष्टा की है। इससे पाठकों को यह भली प्रकार ज्ञात हो जायगा कि राजस्थान के राजनैतिक और सैनिक रंग मंच पर ओसवाल वीरो ने कितने बड़े २ खेल खेले हैं। इन्होंने अपनी वीरता से, अपनी दूरदर्शिता से और अपने भात्मत्याग से मारवाड़ राज्य को बड़े २ संकटो से बचाया है और मारवाद के नरेशों ने भी समय २ पर इनकी बहुमूल्य सेवाओं को मुक्तकंठ से स्वीकार किया है। भण्डारी गंगारामजी महारांजा मानसिंहजी के राज्यकाल में सिंघी इन्द्रराजजी की तरह भण्डारी गंगरामजी भी बड़े नामांकित पुरुष हुए। गंगारामजी लुणावत भण्डारी थे । संवत् १८६७ के मार्गशीर्ष वदी ७ को इन्हें दीवा - नगी का उच्चपद प्राप्त हुआ। इसके पहले भी इनके घराने में राज्य के दीवानगी जैसे सर्वोच्च ओहदे रहे थे । ये बड़े राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी और वीर थे । महाराजा मानसिंहजी को जालौर से जोधपुर लाने में जिन २ महानुभावों का हाथ था उनमें ये प्रधान थे। जयपुर की बढ़ाई में जो महत्वपूर्ण कार्य्यं सिंघी इन्द्रराजजी ने किया ठीक वैसा ही इन्होंने ही किया । इन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और तत्कालीन मारवाड़ को बड़े ९ संकटों से बचाया । सिंघी गुलराजजी, मेगराजजी, कुशलराजजी इन तीनों सज्जनों ने एक समय में महाराजा मानसिंहजी की बड़ी २ सेवाएँ की । महाराजा मानसिंह को जालौर के घेरे से सुरक्षित रूप से जोधपुर लाकर उन्हें राज्यासन पर प्रतिष्ठित करने में इनका ६३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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