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________________ महाराज बहादुरसिंहजी-भापका जन्म सन् १८. में हुवा। माप अच्छे शिक्षित समलवार एवम् उदार हृदय के रईस हैं । आप अपने मंदिर, धर्मखान, स्कूल भादि की व्यवस्था बड़े ही योग्य बंस से करते हैं। सम्मेदशिखरजी, चम्पापुरीजी, भादि तीर्थों का प्रबन्ध भार जैन समाज की भोर से भापके जिम्मे है और उसमें आप बड़ी तत्परता से माग आते हैं। अपने पूर्वजों की कीर्ति को अशुभम बनाये रखने को मापके हृदय में बड़ी लगन है । भापके अमार बाजबहादुरसिंहजी एम. एल. सी०, श्रीपाल बहादुरसिंहजी, महिपाल बहादुरसिंहबी, भूपाल बादुरसिंहली तथा जगतपाल बहादुरसिंहजी नामक पुत्र हैं। श्री ताजबहादुरसिंहजी सुशिक्षिव एवम् विचारवान नवयुवक हैं। जून सन् १९२९ में आप बंगाल लेजिस्लेटिव कौंसिल के मेम्बर निर्वाचित हुए थे। आप लोगों की विस्तृत जमीदारी बंगाल तथा बिहार प्रान्त के मुर्शिदाबाद, वीरभूमि, हुपली, कईमान, रंगार, दिनाजपुर, पुर्णिया संथाल परमना, राजशाही, हजारीबाग, गया, बिहार आदि जिलों में है। दिनाजपुर में प्राइवेट बैंकिंग का काम भी बापो यहाँ होता है। आपकी स्टेट बाळूछ स्टेट के नाम से प्रसिद्ध है। मेजर जनरल दीवान विशनदासजी रायबहादुर सी० एस० आई० सी० आई० ई० __ का खानदान, जम्मू इस खानदान के लोग श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी सम्प्रदाय को मानने वाले सज्जन हैं। यह सानदार पहले बीकानेर में निवास करता था। वहाँ से सैकड़ों वर्ष पहले यह सरसा में और वहाँ से कसूर में भाकर बसा । कसूर से महाराजा रणजीतसिंहजी के समय में लाहौर में चला गया। लाहौर से मजीस (अमृतसर) में तथा वहाँ से गदर के समय में सियालकोट और फिर जम्मू आकर बस गया। सभी से इस खानदान के लोग जम्मू में निवास कर रहे हैं। इस खानदान में लाला बुग्गामलजी हुए । इनकी सीसरी पुश्त में काका दामामलजी हुए। माप पंजाब केशरी श्री महाराजा रणजीतसिंहजी के अहलकारों में से थे । आपके पुत्र लाला किशनचंदजी का जन्म संवत् १८९१ में तथा स्वर्गवास संवत् १९७२ में हुआ । आपके दो पुत्र हुए। जिनके नाम श्री विशनदासजी राय बहादुर एवं दीवान अनंतरामजी हैं। . राय बहादुर विशनदासजी का जन्म संवत् १९२१ में हुमा । आप उन लोगों में से हैं, जो अपनी मसिमा और बुद्धि के बल पर अपना गौरव व मान प्राप्त करते हैं। आपने अपने परिवार को व अपने समाज को अपनी बुद्धि के बल से खूब चमकाया। मापने सन १८८६ में काशमीर-स्टेटकी सर्विस में प्रवेश किया। गुरूर में भाप स्वर्गीय राजा रामसिंहजी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे । इसके बाद आप Military Secretary
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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