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________________ श्री बुद्धसिंह प्रतापसिंह दूगड़ का खानदान, मुर्शिदाबाद दूगड़ और सूगड़ के कई पीढ़ी बाद सुखजी सन् १९६२ ई० में राजगढ़ भाषे। आप बादशाह शाहजहाँ के यहाँ ५ हजार सेना पर अधिपति नियुक्त हुए और राजा की पदवी से विभूषित किये गये। भापके बाद १४ वीं शताब्दी में वीरदासजी हुए जो किशनगढ़ (राजपूताना) से बंगाल के मुर्शिदाबाद नगर में जाकर बस गये। तभी से इस खानदान के लोग यहाँ ही निवास करते हैं। आपने यहाँ बैंकिंग का न्या. वसाय आरम्भ किया । आपके पुत्र बुद्धसिंहजी हुए । बुद्धसिंहजी के पुत्र बहादुरसिंहजी एवम् प्रतापसिंहजी ने इस व्यवसाय को तरकी पर पहुंचाया। बहादुरसिंहजी निसन्तान स्वर्गबासी हुए। राजा प्रतापसिंहजी दूगड़-आपने भागलपुर, पुर्णिया, रंगपुर, दिनाजपुर, माल्दा, मुर्शिदाबाद, कुचविहार आदि जिलों में जमीदारी की खरीदी की। आप बड़े नामांकित पुरुष हो गये हैं। आपकी धार्मिक मनोवृत्तियाँ भी बड़ी बढ़ी चढ़ी थी। आपने कई स्थानों पर जैन मन्दिरों का निर्माण कराया। सार्वजनिक कामों में आपने पकी र रकमें मेंट की तथा अपनी जाति के सैकड़ों व्यक्तियों के उत्थान में उदात्ती दिखाई। विष्ठी के बादशाह और बंगाल के नवाब ने खिल्लत बख्श कर आपका सम्मान किया था। बंगाल की जैन समाज में आप सबसे बड़े जमीदार थे। आपने पालीताना और सम्मेद शिखरजी की पात्रा के लिये एक बहुत बड़ा पैदल संघ निकाला था। इस प्रकार पूर्ण गौरवमय जीवन व्यतीत करते हुए सन् १८५० में आप स्वर्गवासी हुए। आप अपने पुत्र लक्ष्मीपतिसिंहजी और धनपतिसिंहजी का विभाग अपनी विद्यमानता में ही अलग कर गये थे। __राय लक्ष्मीपतिसिंहजी बहादुर-आपने अपने जीवनकाल में अपनी विस्तृत जमीदारी में कितने ही स्कूल और अस्पताल स्थापित किये एवम् सार्वजनिक संस्थाओं में यथेच्छ सहायताये दी। जैन समाज में आपने भी बहुत बढ़ी कीर्ति पैदा की थी। आपने छत्रबाग (कठगोला) नामक एक दिव्य उपवन लाखों रुपयों की लागत से सन् १८७६ में बनाया जो मुर्शिदाबाद और बंगाल का दर्शनीय स्थान है इसमें एक सुन्दर जैन मन्दिर भी बना है। इन सार्वजनिक सेवाओं के उपलक्ष में सन् १८६० में आपको गवर्नमेंट ने 'राय बहादुर, की पदवी से अलंकृत किया । आपने भी सन् १८७० में एक संघ निकाला था । भाप बड़े समय के पावन्द तथा उदारचित्त महानुभाव थे । आपके छत्रपतसिंहजी नामक पुत्र हुए। . छत्रपतसिंहजी-आप बहुत स्वतन्त्र विचारों के निर्भीक सज्जन थे। बलकले के जैन समाज में आपका खुब नाम था। वर्तमान में आपके पुत्र श्रीपतसिंहजी और जगपतसिंहजी विद्यमान हैं तथा अपनी जमीदारी का प्रबन्ध करते हैं। आप भी सरल स्वभाव के शिक्षित महानुभाव हैं। समाज में आप सजनों का भी अच्छा सम्मान है। जगपतसिंहजी के राजपतसिंहजी, कमलपतसिंहजी प्रतापसिंहजी और
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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