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________________ घण्डिया मेहता तस्वससिंहजी वृद्ध तथा समालदा सजा है। आपके बोधसिंहजी एवं कन्हैयालालजी नामक दो पुत्र हैं। इनमें से कुंवर जोपसिंहजी बी. ए., एक० एक.बी० है तथा इस समय भाप मेवाड़ में नायब हाकिम हैं। कुंवर कनपालालबीरा में पा रहे हैं। पण्डिया घण्डिया गौत्र की उत्पत्ति ऐसा मामला है कि राठौड़ वंशीय राजपूत घुड़िया शाखा में राजा चन्द्रसेन ने कमीज नामक नगर में भहारक शांतिसूर्यकी से संवत् १५ में जैनधर्म की दीक्षा ग्रहण कर की। इससे उस समय घुड़िया से गुगलिया गौत्र की स्थापना हुई। इसके बाद राठौड़ वंशीय लोग मण्डोवर माये। इसी वंश के शाह कडोजी ने गर्लंड ग्राम में एक मन्दिर बनवाया। वहाँ से गरदिवा शाला की उत्पत्ति हुई। शाह माधोसिंहजी घलूण्डिया का खानदान, उदयपुर इसके बाद इस वंश के लोगों ने संवत् १८२५ में मंडोवर से आकर जाशेर तथा सांभर नामक स्थानों पर मन्दिर बनवाया। शाह कल्लोजी के वंश में सूरोजी बड़े मशहूर तथा मामांकि व्यक्ति हो गये हैं। भाप बड़े उदार चरित्र वाले तथा दानी सज्जन थे। कहते हैं कि मंडोर के प्रधान भंडारी समरोजी को मांडू के बादशाह ने पकड़ कर कैद कर लिया। उस समय उसे मारह लाख रुपया देकर सूरोजी ने खुदवाया । यहाँ आपने एक मन्दिर बनवाया स्था पर कियाइसमें बहुत-सा पास हुमा। कोठारिया के मनोरजी सुराना और बाप दोनों मिल संवत् ११. में उदयपुर भाये । भाप एक पुत्र हुभा जिनकानाम श्रीवंतजी था । श्रीवंतजी के खमाजी, शिवानी, इसरजी, रतनाजी और ठाकुरसिंहजी मामक पाँच पुत्र उत्पन्न हुए। सम्बत् १७४० में महाराणा श्री जयसिंहजी ने ठाकुरसिंहजी को गोसमाणो नामक गांव जागीर में दिया तथा सिरोपाव दिये। आपके उदयभानजी, कल्याणदासजी और बदभानजी नामक तीन पुत्र हुए । व भानजी ने लड़ाई में हादा को मारा जिससे प्रसन्न होकर महाराणा ने भापको सिरोपाव प्रदान किया। आपके पुत्र हंसराजबी तथा हंसराजजी पुत्र शिवकालजी हुए।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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