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बोसवाल जाति का इतिहास
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ब्योढ़ी वाले मेहता का खानदान, उदयपुर इस खानदान के स्थापक श्रावणजी के तृतीय पुत्र सरीपतजी से यह खानदान प्रारम्भ होता है। ऐसा कहते हैं कि आपको महाराणा की ओर से सातगाँव जागीरी में देकर जनानी ज्योढ़ी का काम सौंपा गया था। इस से आप लोग ड्योढ़ी वाले मेहता के नाम से मशहूर हुए तथा आज तक आपके वंशजों को
द है। सरीपतजी को महाराणाजी ने मेहता की पदवी प्रदान की। तब से आपके वंशज मेहता कहलाते हैं। आपकी तीसरी पीढ़ी में हरिसिंहजी तथा चतुर्भुजजी नामक नामांकित व्यक्ति हो गये हैं। आपको पांच गांव के पट्टे मिले थे जिन्हें आपने बसाया। आगे जाकर आपके वंशजोंमें मेहता मेघराजजी को छोड़कर आपका सारा कुटुम्ब साके के समय वीरता से लड़ता हुआ मारा गया। मेघराजजी महाराणा उदयसिंहजी के बड़े विश्वास पात्र थे। आप जनानी ज्योढ़ी तथा भण्डार का काम करते रहे। उदयपुर में आपने श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर बनवाया । इसके अतिरिक्त आपने एक टीबा बनाया जो आप भी मेहतों का टीबा के नाम से मशहूर है। इसी खानदान मे मेहता पूरनमलजी, चन्दरभानजी तथा लखमीचंदजी नामक तीनों भाई बड़े नामी हो गये हैं। आप लोगों ने उदयपुर में लक्ष्मीनारायणजी का मन्दिर बनवाया।
- मेहता जबरचन्दजी-मेहता पूरनमलजी की दो तीन पीढ़ियों के बाद आप बड़े कारगुजार व्यक्ति हुए। आपको महाराणाजी ने इज्जत आवरू के साथ जनानी ड्योढ़ो का काम इनायत किया । इसमें मापने बड़ी योग्यता से सब काम संभाला जिससे प्रसन्न होकर महाराणाजी ने आपको छडगा का खेड़ा नामक गांव जागीर में बक्षा। इसके अतिरिक्त बलेणा घोड़ा, बैठक सभा, नामा पावण, पाटवी बरोबर कुरुब के सम्मानों से सम्मानित किया। आपके स्वर्गवासी होने पर आपकी धर्मपत्नी आपके साथ सती हुई।
... मेहता देवीचन्दजी और प्यारचंदजी-मेहता जवरचन्दजी के पश्चात् आप दोनों भ्राता मशहूर व्यक्ति हो गये हैं। आपकी सेवाओं के उपलक्ष में महाराणा शम्भुसिंहजी ने बलेणा घोड़ा, भीमशाही तुर्रा, तथा रुपेरी पवित्रा इनायत कर सम्मानित किया। इतना ही नहीं आपको ढावटा नामक गाँव भी जागीर में बक्षा गया था। महाराणा फतेसिंहजी ने भी आपको सोने का लंगर तथा हीरे की कण्ठी देकर सम्माकिया था। आपके बड़े भाई मेहता देवीचन्दजी को जिंकारा सोने का लंगर, हीरे की कण्ठी भादि का सम्मान भी इनायत किया गया था। मेहता प्यारचन्दजी ने अपने नाम पर अपने भाई मेहता देवीचन्द जी के मझले पुत्र मेहता पन्नालालजी को दत्तक लिया।
मेहता पन्नालालजी-आपने संवत् १९५२ से संवत् १९६७ तक जनानी ब्योदी का काम बड़ी योग्यता के साथ किया । आप उदयपुर राज्य में एक प्रतिष्ठित पुरुष समझे जाते हैं। आपको दरबार