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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास आदि कई स्थानों के हाक्रिम रहे । अब भी आप मेवाड़ में हाकिम हैं । आप सुधारक विचारों के और बड़े मिलनसार सज्जन हैं। आपके नाम पर मेहता जीवनसिंहजी के तीसरे पुत्र चन्द्रसिंहजी दत्तक आये हैं । आप उदयपुर रेलवे में ट्राफिक सुपरिंटेन्डेन्ट हैं । इसी तरह आलिमसिंहजी के तीसरे पुत्र मेहता उग्रसिंहजी पुत्र मदनसिंहजी और पौत्र प्रतापसिंहजी तथा राजसीजी विद्यमान हैं। के मेहता तेजसिंहजी - आप बी० ए० एल० एल० बी० तक शिक्षा प्राप्त कर कुछ समय तक सीता पुर में बकालात करते । संवत् १९७५ में कुम्भलगढ़ और साम्भर प्रान्त के हाकिम के पद पर नियुक्त हुए संवत् १९७८ में आप राजकुमार भूपालसिंहजी के प्राइवेट सेक्रेटरी नियत हुए और उनके राज्य पद पाने पर भी उसी पद पर अधिष्ठित रहे । महाराणाजी ने आपको सोने का लंगर प्रदान कर सम्मानित बढ़ाया है । सन् १९३१ के फाल्गुन मास में आपको दरबार मे जालमपुरा नाम का गाँव जागीर में वख्शा है। मेहता मोहनसिंहजी - आप राजस्थान के प्रमुख व्यक्तियों में से हैं। आपने अपनी विद्वत्ता और अपनी अपूर्व सेवा से राजस्थान के नाम को उज्ज्वल किया है। प्रारम्भ में आप एम० ए० एल० एल० बी० तक शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद आगरा और अजमेर के कॉलेजों में प्रोफेसर रहे। इसके बाद आपने पंडित बैंकटेश नारायणजी तिवारी के सहयोग में प्रयाग की सुप्रसिद्ध सेवा समिति के कार्य्य को संचालित किया । इसके बाद संवत् १९७८ में आप कुम्भलगढ़ के हाकिम बनाये गये । इसके पश्चात् आप उदयपुर राज्य के असिस्टंट सेटलमेंट आफीसर के पद पर नियुक्त हुए। सन् १९२५ में आपने इग्लैंड जाकर वेरिस्टरी की परीक्षा पास की और लंदन युनिवर्सिटी की सर्वोच्च उपाधि पी० एच० डी० प्राप्त की। यहाँ यह कहना आवश्यक है कि राजपूताने में यह पहिले ही महानुभाव हैं, जिन्होंने सब से पहिले इस सम्माननीय उपाधि को प्राप्त किया है। इसके बाद आप भारत आये, तथा मेवाड़ स्टेट के रेवेन्यू आफीसर के पद पर नियुक्त हुए । डाक्टर मोहनसिंहजी का ऊपर थोड़ा सा परिचय दिया गया है । सब पहिलुवों से आपका जीवन बड़ा गौरवपूर्ण तथा प्रकाशमय है । मानवीय सेवाओं के भावों से आपका हृदय लवालब भरा है। स्वार्थ त्याग के आप ज्वलंत उदाहरण हैं। राजस्थान में सब से पहिले बड़े पाये पर स्काउटिंग का काम आपही ने शुरू किया । विद्या भवन जैसी आदर्श संस्था आप ही के परम त्याग का फल है। यह एक ऐसी 1 संस्था है, जो शिक्षा के उच्च आदर्श तथा देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर प्रस्थापित की गई है और जहाँ दूर २ से स्वायं त्यागी विद्वान बुलाकर रक्खे गये हैं। यह संस्था भारतवर्ष में अपने ढंग की अपूर्व है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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