________________
सवाल जाति का इतिहास
इनकी जागीर में इनके पिता के समय के चारों गाँव रहे। मगर संवत् १८९० में मेवदा नामक गांव के स्थान पर समाखदी दी गई थी। इनके छोटे भाई अचलदासजी की जागीर में “भोंपों का खेड़ा" अलग ही था। एकलिंगदासजी के पुत्र भगवानदासनी एवम् अचलदासजी के पुत्र सबदासजी थे।
भगवानदासजी-आपका जन्म संवत् १८५९ चेत बदी को हुआ। संवत् १९०१ में महाराणा सम्पसिंहली, की नाराजगी होने से उन्होंने आपकी जागीर, गेणाघट के गाँव, घर खेती वगैरह तब खाल सेकषि। फिर संवत् १९३० में महाराणा शम्भूसिंहजी ने रूपाखेदी के बजाय ग्राम बान्यो जागीर में प्रदान किया । भगवानदासजी का स्वर्गवास १९३९ में हुमा।
शानमनजी-आपका जन्म संवत् १८४८ वश स्वर्गवास संवत् १९४७ फागण सुदी १४ को हुआ। भाप मुस्तकील तौर पर कोई काम नहीं किया ।
लक्ष्मीलालजी-आप जन्म संवत् १९२२ असाद बदी ९ को हुआ । संवत् १९५० भापके जिम्मे लवाजमा का बखाया और संवत् १९५६ में गेणे का काम बापके सिपुर्द हुमा जो बदस्तूर मारहे हैं। बाप भी राज्य की सेवाएं बहुत ईमानदारी के साथ कर रहे हैं।
भारके देवीलालजी नामक एक पुत्र हैं। जिनका जन्म संवत् १९६५ में हुआ है। भाप संवत् १९८० में बो. ए. की डिग्री हासिक की। भाप संस्कृत में शात्री परीक्षा की पास हैं। आप ने संस्कृत कादम्बरी के कुछ भागों का (शुकनासोपदेश, महाश्वेत वृत्तान्त ) का अंग्रेजी में अनुवाद करके सन् १९५ में प्रकाशित किया है। आप बड़े होनहार और प्रतिभाशाली बुधक है।
मेवाड़ोद्धारक भामाशाह का घराना, उदयपुर इस घराने वाले सज्जन कावड़िया गौत्र के हैं । महाराणा सांगा के समय इस गौत्र के प्रसिर पुरूष कावदिया भारमलजी रणथंबोर नामक किले के किलेदार नियुक्त किये गये थे। इनके पुत्र मेस-उद्धारक वीरवर भामाशाह हुए। इन भामाशाह की वीरता, इनका स्वार्थ स्याम और इनकी बुद्धिमानी को कौन इतिहास पाठक नहीं जानता ? जब तक महाराणा प्रताप का नाम अमर रहेगा तब तक सर्वस्व त्यागी भामाशाह का नाम भी नहीं भुलाया जा सकता। मेवाड़ में भामाशाह की जो अपूर्व सेवाएं हैं उनके समान विरले ही उदाहरण इतिहास में रष्टि गोल होते हैं। जिस प्रकार भामाशाह
१०८