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ओसवाल जाति का इतिहास
लूणिया पचाल लजी का जन्म सम्वत् १९२० में हुआ। आप अपने बड़े भ्राता के साथ व्यापार में सहयोग देते रहे । आप दोनों भ्राताओं का कारवार संवत् १९६५-६६ से अलग २ हो गया है। आप इस समय विद्यमान हैं। आपके पुत्र पन्नालालजी बम्बई में अलसी और कॉटन के स्पेक्यूलेशन का काम करते हैं।
. लूणिया दीपचन्दनी का जन्म संवत् १९३८ में हुआ। भाप अपने पिताजी के साथ कपड़े के व्यापार में सहयोग देते रहे । आपका सम्वत् १९७३ में अंतकाल हुआ । आपके पुत्र लूणिया रामलालजी का जन्म सम्वत् १९५५ में हुआ।
लूणिया रामलालजी ने कपड़े के व्यापार को उठाकर सराफी का थोक काम काज शुरू किया, तथा अकेले रहने के कारण बांदा की जमीदारी का काम भी उठा दिया । इस समय आप अजमेर के मशहूर सराफ माने जाते हैं तथा ओसवाल हाईस्कूल और ओसवाल कन्याशाला के खजांची हैं। आपके पुत्र अमरचन्दजी हैं।
बन्दा-मेहता
बन्दा मेहता गौत्र की उत्पत्ति
इस गौत्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह किम्बदन्ति है कि संवत् ७३५ में पीपाड़ के तत्कालीन पड़िहार राजा कान्हजी के पौत्र राजसिंह ने आचार्य बिमलचन्द सूरि के उपदेश से जैन धर्म ग्रहण किया तभी से इनकी सन्ताने ओसवाल जाति में सम्मिलित की गई और इनका गौत्र पूर्ण भड़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इनके कुल देवता नाग हैं।
राजसिंह के बारह पुश्त पश्चात् इस वंश बासणजी हुए जिनके लिए कहा जाता है कि वे अनहिलपुर पट्टण के राजा पालजी के दीवान हुए, इन्होंने वहाँ श्री ऋषभदेव का मन्दिर बनवाया । वहाँ पर इन्हें संघपति और घीया मेहता की पदवी मिली, इनकी चौवीसवीं पुश्त में आसदत्तजी हुए, इन्होंने तत्का. सीन दिल्ली नरेश की बहुत बन्दगी की । जिससे प्रसन्न हो बादशाह ने इन्हें बन्दा मेहता के नाम से सम्मानित किया, तभी से इनका गौत्र इस नाम से प्रसिद्ध है।
आसदत्तजी की आठवीं पुश्त में खींवसीजी हुए। खींवसीजी के भखैचन्दजी और जीवराजजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें मेहता अखैचन्दजी का नाम जोधपुर के राजनैतिक इतिहास में अपना खास स्थान