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मोसवास नाति का इतिहास
लगे। आपकी जवाहरात परखने की रष्टि सूक्ष्म थी। इनकी होशियारी से प्रसन्न होकर तरकालीन सिंधिया सूबेदार ने आपको अपने खजाने का पोहर बनाया। उस समय अजमेर में मरहठों का शासन था, अतएव आप मरहठा खजाने के खजांची होकर अजमेर आये। पोद्दारे के साथ २ आपने अजमेर में "तिलोकचंद हिम्मतराम" के नाम से अपना घरू न्यापार भी भारम्भ किया। धीरे धीरे आपने स्याति व सम्पत्ति उपार्जिन कर अजमेर से सिद्धाचलजी ( शत्रुजय ) का एक संघ निकाला। उसमें जोधपुर से एक और संघ लेकर सेठ राजारामजी गढ़िया भी आये थे। आपने. सिवाचलजी के खरतरवसी में एक मंदिर बनवाया, और एक धर्मशाला बनवाई, जो आनन्दजी कल्याणजी के बंडे के नाम से मशहूर है। दादा जिनदत्त सूरिजी महाराज की दादावाड़ी में आपकी छतरी आपके पुत्र हिम्मसरामजी र सुखरामजी ने बनवाई। उसके शिलालेख में संघ निकाले जाने का विवरण है। इस प्रकार प्रतिष्ठापूर्ण जीवन विताले हुए संवत् १८८३ में लूणिया तिलोकचन्दजी का स्वर्गवास हुआ। आपके हिम्मतरामजी तथा मुखसमयी नामक दो पुत्र हुए। लूणिया हिम्मतरामजी के गजमलजी, चांदमलजी तथा जेठमलजी नामक ३ पुत्र हुए इनमें लूणिया चांदमलजी अपने काका सुखरामजी के नाम पर दत्तक गये।
____ गजमलजी लूणिया सेठ गजमलजी लूणिया ने इस परिवार में बहुत नाम पाया । मापने अपनी स्थायी सम्पत्ति काफी बढ़ाई थी । आप अपने समाज के बड़े २ झगड़ों को बड़ी बुद्धिमत्तापूर्वक निपाते थे। आपकी हवेलियों के पास का मोहल्ला आज भी गजमल लूणिया की गली के नाम से मशहूर है। संवत् १९२० में आप तीनों बन्धुओं का काम कमजोर हो गया। सेठ गजमलजी की मौजूदगी में ही उनके दोनों भ्राता स्वर्गवासी हो गये थे।
सेठ गजमलजी के पुत्र करणमलजी तथा जेठमलजी के कुन्दनमलजी, नवलमलजी, कानमलजी तथा सोहनमलजी नामक पुत्र हुए। जब लूणिया गजमब्जी की स्थिति कमजोर हो गई तब इनके भतीजे लूणिया थानमलजी इन्दौर, बम्बई होते हुए हैदराशद गये, तथा वहाँ उन्होंने अच्छी उन्नति प्राप्त की।
लूणिया कुन्दनमलजी-आप अजमेर की भोसवाल समाज में प्रथम बी०ए० पास शुदा सजन थे। भापके नाम पर लूणिया कानमलजी के पुत्र जवाहरमरूजी दत्तक आये।
कानमलजी लूणिया-आपने सन् १८४७ की प्रथम जुलाई से विक्टोरिया प्रेस के नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस का स्थापन किया और १८९६ के ज्युबिली उत्सव पर इसका नाम डायमंड जुबिली प्रेस रक्खा गया। सन् १९१८ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके कनकमलजी, जवाहरमलजी, उमरावमलजी तथा हमीरमलजी नामक पुत्र हुए। इनमें कनकमलजी करणमरूजी के नाम पर, जवाहरमजी कुन्दनमलजी के नाम पर और उमरावमलजी अपने बड़े भाता कनकमलजी के नाम पर दत्तक गये।