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मोसवाल जाति का इतिहास
संवत् १८६२ में जोधपुर तथा जयपुर रिपासतों के दरमियान उदयपुर की कुमारी के सगपण के सम्बन्ध में झगड़ा खड़ा हुआ, और दोनों तरफ से झगड़े की तयारी होने लगी। इस दुर्घटना को टालने के लिये ललवाणी अमरचन्दजी जयपुर भेजे गये और इन्होंने बुद्धिमानी पूर्वक इस मामले को शांत किया। इससे प्रसन्न होकर आपको जोधपुर दरबार ने जयपुर का वकील बनाया। आपके पुत्र फतेकरणजी, चतुर्भुजजी और रूपचन्दजी हुए । इनमें संवत् १८६३ में ललवानी फतेकरणजी पर्वतसर के होकिम बनाये गये । आपके पुत्र फोजकरणजी जेतारण के हाकिम मुकर्रर किये गये थे। उस समय से अमरचन्दजी का परिवार जयपुर में निवास करता है।
- ललवाणी प्रतापमलजी- ललवाणी कुशालचन्दजी के छोटे भ्राता माणकचन्दजी का परिवार जोधपुर में रहा। इनके पुत्र विजेचंदजी और पौत्र प्रतापमलजी हुए। आप वीर पुरुष थे। आपने कई लड़ाइयाँ लड़ी। संवत् १८६३ में जब जोधपुर पर आक्रमण हुआ, तब ललवानी प्रतापमलजी जोधपुर दरवार की ओर से युद्ध में सम्मिलित हुए। संवत् १८६३ की जेठ वदी १२ को आपको महाराजा मानसिंहजी ने एक रुमन प्रसन्नता का दिया था। संवत् १८७९ में सरदारों के बखेड़े को शांत करने के लिए फौज लेकर आप गूलर गये, और वहाँ फतह पाई । संवत् १८८१ में आप दोलतपुरे के हाकिम मुकर्रर हुए। संवत् १८४७ में इस स्थान पर इनके बड़े पुत्र सिधकरणजी भेजे गये और आप फौज के कार्य के लिये जोधपुर बुलवा लिये गये। ललवाणी प्रतापमलजी के पुत्र सिधकरणजी तथा अभयकरणजी थे। इनमें सिधकरणजी के जीवणचन्दजी और लालचन्दजी तथा अभेकरणजी के लिखमीचन्दजी और शिवचन्दजी नामक पुत्र हुए। संवत् १८९९ में ललवाणी लखमीचन्दजी जेतारण के और १९०२ में शिवचन्दजी दौलतपुरे के हाकिम बनाये गये। इसी तरह सिधकरण जी डीडवाणे के कोतवाल बनाये गये। इस प्रकार आप लगातार रियासस की सेवाओं में भाग लेते रहे।
ललवाणी जीवणचन्दजो प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । आपके पुत्र शाह पृथ्वीराजजी इस समय विद्यमान हैं। आपकी अवस्था ६७ साल की है। आप इस समय रेवेन्यू आफिसर हैं। आपने रियासत के मालगुजारी बंदोवरत में बहुत काम किया है, तथा तजुरवेकार और होशियार मुत्सुद्दी हैं। आपके छोटे भाई दीपचन्दजी हवाला में माफिज अफसर हैं। इनको हवाले के काम का अच्छा तजुर्वा है। आपके पुत्र रतनचंद जी हैं। इनमें रतनचंदजी, पृथ्वीराजजी के नाम पर दत्तक गये हैं। ललवाणी रतनचन्दजी के पुत्र जगदीशचन्द है।
यह परिवार जोधपुर के ओसवाल समाज में अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है । ललवानी पृथ्वीराज भी पुराने प्रतिष्ठित महानुभाव है।