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हुधोरिया १. में सरकार ने आपको राजा को उपाधि से सम्मानित कया। भाप जितने कायं दक्ष थे उतने ही दानवीर भी थे। आपका झुकाव शिक्षा प्रसार की ओर अधिक रूप से रहता थ । सन् १९१५ ई. में आप कलकत्ता के ब्रिटिश इण्डिया एसोसियेशन के उप सभापति रहे । आप मुर्शिदाबाद जिला बोर्ड के सदस्य, इम्पीरियल लीग की कार्य कारिणी के सभासद, किंग एडवर्ड मेमोरियल फण्ड कमेटी के मेम्बर रहे है। इसके अतिरिक्त आप कलकत्चे के मशहूर क्लब लेण्ड होल्स ऐसोसियन कलकत्ता के, जैन एसो. सियेशन आफ इण्डिया बम्बई के, आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी की, तीर्थ स्थान कमेटी के और कलकत्तल रॉयल ट्रोफ क्लब के मेम्बर थे। श्री सम्मेदशिखरजी के झगड़े के लिए पटने में जो कान्फरेन्स हुई थी उसके आप प्रेसीडेन्ट निर्वाचित हुए थे। सार्वजनिक कामों में इस प्रकार लगे रहने पर भी आप अपने व्यवसाय का कार्य स्वयम् देखते हैं। आपका स्वर्गवास संवत् १९१० में हो गया।
दुधोरिया परिवार अपनी दानवीरता के लिये सदा से प्रसिद्ध चला आ रहा है। इसके दान से बनी हुई धर्मशालाएं, मौषधालय, अस्पताल तथा स्कूल मादि आज भी भापकी अमर कीर्ति को फैला रहे हैं। स्वयं राजा सा० ने जब से कार्य भार सम्हाला तब से दोनों हाथ खोल कर लाखों रुपयों का दान किया। मापाख रुपये लेडी मिण्टो फेटी के नर्सिङ्ग एसोसियेशन को, २० हजार सप्तम एडवर्ड कारोनेशन इन्स्टीयूट को, १ हजार इम्पीरियल बार रिलीफ फण्ड को और ४ हजार कृष्ण नगर कालेज को दान दिये हैं। इसके अतिरिक्त कष्ट प्रपीड़ित लोगों की सेवा और सहायता आप सदैव करते रहते थे । सन् १९१९-२० में मैमनसिंह, ढाका, फरीदपुर, इत्यादि स्थानों में बहुत जोर का तूफान आया। उसमें लोग धरबार विहीन होकर महान् दुर्दशा ग्रस्त हो गये थे। ऐसे कठिन समय में आपने हजारों मन चांवल भेज कर, उन लोगों की सहायता पहुँचाई । लिखने का मतलब यह है कि इस खानदान का सार्वजनिक और धार्मिक कार्यों में बहुत हाथ रहता है। ओसवाल समाज में यह परिवार बहुत अग्रगण्य और प्रतिष्ठा सम्पन है। इस परिवार की बंगाल ग्राम में बहुत बड़ी जमीदारी है तथा कई स्थानों पर बैकिंग व्यापार के लिये फर्मे खुली हुई हैं।
सेठ कालुराम सुखलाल दुधोरिया, छापर ___ इस परिवार के प्रथम पुरुष करीब २७५ वर्ष पूर्व लच्छासर नामक स्थान पर आकर पसे । २०० वर्ष के पश्चात् यहाँ से इस खानदान के पूर्वज जौधरामजी के पुत्र गुमानसिंहजी सं० १९१२ में छापर गये। तभी से यह परिवार छापर में ही निवास करता है। सेठ गुमानसिंहजी दुधोरिया की साधारण स्थिति थी। अतः आप छापर में ही व्यापार करते रहे । आपके चार पुत्र हैं, जिनके नाम क्रमशः बा. मेठमलजी, शेरमसजी, कालूरामजी एवं पांचीरामजी हैं।