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________________ - धोरिया जंगीपुर और मैमनसिंह में अपनी बैटिंग की फमें स्थापित की। आप सन् १८१२ में स्वर्गवासी हुए। आपके बुद्धसिंहजी तथा विशनचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। वुद्धसिंहजी और विशनचन्दजी-माप दोनों हीभाईवाल्यकाल से ही कुशाग्रबुद्धि और होनहार थे। अतः अपनी फर्म के व्यवसाय को आप लोगों ने बरे हो सुचारू रूप से संचालित कर बहुत अधिक बढ़ा लिया। आप लोगों ने अपनी पूंजी जमीदारी खरीदने के काम में लगाई और थोदे ही समय में मुर्शिदाबाद, मैमनसिंह, वीरभूमि, प्रदिया, फरीदपुर,पुनिया, दिनाजपुर और राजशाही जिलों में आपकी काफी जमीवारी हो गई। आप लोगों ने धन संचय के अतिरिक्त उसके सदुपयोग की और भी अच्छा ध्यान दिया। समाज के दीन व्यक्तियों की सहायता करना, भूखों को खिलाना, अकाल के समय अवक्षेत्र खोल कर पीड़ितों की मन व से सहायता करना बादि जितने ही लोकोपकारी कार्य आपने किये । इन सबसे प्रसन्न होकर मर मे दोनों भाइयों को रायबहादुर' के सम्मान से सम्मानित किया। माप लोग मुर्शिदाबाद की साकीचमाबरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किये गये। सन् 100 में दोनों भाई अलग से गये और अपने नाम से स्वतंत्र कार्य करने लगे। राम बुद्धसिंहजी दुधोरिया वहादुर के इन्द्रचन्द्रजी, अजितसिंहजी तथा मारसिंहजी नामक तीन पुत्र हुए। बाबू इन्द्रचन्द्रजी बडे ही होनहार, सुशिक्षित एवं उत्साही नवयुवक थे। भापके बा. जगतसिंहजी और रणजीतसिंहजी नामक दो पुत्र हुए, जिनमें बा. रणजीतसिंहजी विद्यमान हैं। सन् १८८९ ई. में बाबू इन्द्रचन्द्र दुधोरिया ने योरोप की यात्रा की और वहाँ से लौटने पर आपने अपने पिता से सामाजिक सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। कुछ ही समय बाद आपका भी स्वर्गवास हो गया। बाबू अजितसिंहजी एवम् बाबू कुँवरसिंहजी दुधोरिया राय बुधसिंहजी बहादुर की दूसरी धर्मपत्नी से हुए। आप दोनों का खेदजनक स्वर्गवास सन् १९१० ई० में २४ घण्टों के अन्तर से होगया। बा० अजितसिंहजी के दो पुत्र हुए जिनका नाम गबू नवकुमारसिंहजी और जयकुमारसिंहजी हैं। यही दो पौत्र वर्तमान में राय बहादुर बुद्धसिंहजी के उत्तराधिकारी हैं। कुमारसिंहजी के कोई सन्तान नहीं हुई। दुधोरिया राजवंश की इस प्रधान शाखा के ये दोनों उत्तराधिकारी अपने पितामह के स्वर्गवास के समय सन् १९२० में केवल १५ और १४ वर्ष के थे। अतः इनके संरक्षण का भार आपके सुयोग्य चाचा राजा विजयसिंहजी दुधोरिया के हाथ में आया। आपने अपनी वंश परम्पस के अनुकूल उन्हें उच्च शिक्षा से विभूषित किया । इन दोनों महानुभावों का व्याह महिमापुर के इतिहास प्रसिद्ध जगत् सेठ की बहिन और पुत्री से सन १९१९ में हुआ। इनके भी एक २ पुष हैं। वयस्क होते ही इन्होंने अपनी स्टेट का सारा कार्यभार सन १९६६ के अगस्त मास से सम्हाल लिया। आप दोनों ही होनहार और उत्साही
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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