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माहर
पुराने और प्रतिष्टित व्यक्ति हैं। साधु सम्मेलन अजमेर के समय भाप स्थानीय स्वागत समिति के सभापति निर्वाचित किये गये थे । आपका संवत् १९१९ में जन्म हुआ है । आपके पुत्र पन्नालालजी साहुकारी और गोटे के व्यापार को सह्मालते हैं । इनके पुत्र पारसमलजी और अभयमलजी पढ़ते हैं।
___ नाहर सिद्धकरणजी के पुत्र पन्नालालजी हुए । इनके पुत्र अमरचन्दजी तथा मूलचन्दजी गोटे का व्यापार करते हैं और तीसरे पुत्र चांदमलजी नाहर सुगनचन्दजी के नाम पर दत्तक गये हैं।
छोटू लालजी नाहर-भाप सन् १८८५ में एफ. ए. पास कर जोधपुर हाईस्कूल के हेडमास्टर हो गये । चार वर्ष बाद आप अजमेर मेयो कालेज में जोधपुर हाउस के गार्जियन के स्थान पर निर्वाचित किये गये । और इसी पद पर कार्य करते हुए सन् १९११ में भाप स्वर्गवासी हुए । आपके नाम पर जावंतराजजी दत्तक आये हैं।
सुगनचन्दजी नाहर-आप हरकचन्दजी नाहर के पुत्र हैं। आपका जन्म संवत् १९२९ में हुआ। सन् १८९७ में आप एफ० ए० क्लास छोड़कर पो० डब्ल्यू. डी० में नौकर हो गये । सन् १९०० में भाप २५) मासिक पर बी० बी० सी० आई० रेलवे के ऑडिट ऑफिस में छाकं हुए, और इसी विभाग में तरकी पाते २ सीनियर ट्रेढेलिंग इन्स्पेक्टर ऑफ अकाउंट के पद पर ४००) मासिक वेतन तक पहुंचे। इस प्रकार सर्विस को सफलता पूर्वक अदा करते हुए मार्च १९३० में आप ग्रेच्युटी लेकर सर्विस से रिटायर्ड हुए।
सुगनचन्दजी नाहर ने सर्विस से रिटायर होने के बाद सार्वजनिक व धार्मिक कामों में हिस्सा लेना भारंभ किया है। आप अखिल भारतीय ओसवाल कान्फेंस अजमेर के उप स्वागताध्यक्ष तथा स्थानक वासी साधु सम्मेलन की स्वागत समिति के सेक्रेटरी निर्वाचित हुए थे। इन सम्मेलनों को सफल बनाने में मापने भरसक प्रयत्न किया था । आपने अपने नाम पर दिमलजी को दत्तक लिया है । इनके समरथमल और और संतोषमल नामक पुत्र हैं।
लाला हीरालाल चुनीलाल नाहर का खानदान, लखनऊ
इस खानदान के पूर्वज लगभग २५० साल पहिले मारवाद से देहली आये, यहाँ उस समय इस वंश में लाला गूजरमलजी प्रतापी पुरुष हुए। इनका शाही दरबार में भी अच्छा मान था। इत्तिफाक से देहकी के बादशाह से नबाव लखनऊ की कुछ अनबन होगई, उस समय लाका गूजरमलजी, लखनऊ नबाव के भागृह से लखनऊ आ गये, और यही इन्होंने अपना स्थायी निवास बनाया । आपके यहाँ जवाहरात और महाजनो का कारबार होता था। आपके पुत्र पूनमचन्दजी हुए और पूनमचंदजी के पन्नालालजी तथा छगनमलजी नामक २ पुत्र हुए। इनमें लाला पूनमचन्दजी के हीरालालजी, जवाहरलालजी तथा मोती