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________________ भाहर प्रदर्शित होता है। सन् १९२७ में आपका अकस्मात् हार्ट फेल होने से स्वर्गवास हो गया । आपके तीन पुत्र और एक कन्या हुए। पुत्रों के नाम क्रम से बाबू भंवरसिंहजी, बावू बहादुरसिंहनी तथा बाबू जोहारसिंहजी थे। खेद है, कि रायबहादुरजी के स्वर्गवास के पश्चात् इन तीनों पुत्रों का भी असमय में ही देहान्त होगया। बाबू भँवरसिंहजी-आपका जन्म सं० १९४० में हुआ था। आप बड़े बुद्धिमान थे । कलकत्ते के सियालदह पुलिस कोर्ट में आनरेरी मजिस्ट्रेट की हैसियत से आपने कई वर्ष तक कार्य किया था। आपका देहान्त सं० १९०९ में हुआ। आपके सजनसिंहजी और भजनसिंहजी दो पुत्र हैं। बाबू बहादुरसिंहजी-आपका जन्म सं० १९४२ में हुआ। आप सदा प्रसन्नचित्त रहते थे । बी० ए० तक आपने अध्ययन किया था। आपको पोस्टेज स्टाम्प के संग्रह का अच्छा शौक था। आपका देहान्त सं० १९८६ में हुआ। आपके जयसिंहजी और अजयसिंहजी दो पुत्र हैं। बाबू जाहारसिंहजी-आपका जन्म सम्वत् १९५६ में हुआ। आप बड़े सरल प्रकृति के थे। आपने भी अंग्रेजी में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। आप बी० ए० परीक्षा पास करके सालिसीटरी का काम सीखते थे । कुछ समय तक रोगग्रस्त रहने पर आपका देहान्त सम्वत् १९८७ में हुभा । आपके किरणसिंहजी दीपसिंहजी, ललितसिंहजी और तरुणसिंहजी ये चार पुत्र हैं। बाबू पूरणचन्दजी नाहर आपका जन्म सं० १९३२ की वैशाख शुक्ल दशमी को हुआ था। ओसवाल समाज में जितने गण्यमान्य विद्वान हैं, उनमें आपका स्थान बहुत ऊँचा है। आपका इतिहास और पुरातत्व सम्बन्धी शौक बहुत बढ़ा-चढ़ा है। आपका ऐतिहासिक संग्रह और पुस्तकालय कलकत्ते की एक दर्शनीय वस्तु है। इनमें जो आपने अतुल परिश्रम, आजीवन अध्यवसाय और अर्थ व्यय किया है, वह प्रत्येक दर्शक अनुभव करेंगे। प्राचीन जैन इतिहास की खोज में आपने बहुत कष्ट सह कर और धन खर्च कर सुदूर आसाम प्रान्त से ले कर उत्तर-पश्चिम प्रदेश, राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़ आदि स्थानों तक भ्रमण किया है। फलस्वरूप आपने जो "जैन लेख संग्रह” नामक पुस्तक “तीन भाग” “पावापुरी तीर्थ का प्राचीन इतिहास" "एपिटोम आफ जैनिज्म" आदि ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं, वे ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण और नवीन अनुसन्धानों से परिपूर्ण हैं । इनके अतिरिक्त आपने समय २ पर जो निबन्ध लिखे हैं, उनका विद्वद्-समाज में बड़ा आदर हुआ है। 'आल इण्डिया ओरियंटल कानफरेंस' के द्वितीय अधिवेशन के अवसर पर जिसमें फ्रेंच विद्वान् डा० सिलभेन लेभी सभापति थे, आपने "प्राचीन जैन संस्कृत साहित्य" पर एक अंग्रेजी में प्रबन्ध पढ़ा था, वह अपने ढग का अद्वितीय था। ११वें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में आपने "प्राचीन जैन भाषा साहित्य” पर जो लेख पढ़ा था वह भी गवेषणपूर्ण था। २० वें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अवसर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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