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औसवाल जाति का इतिहास
भण्डारी खींवसीजी धार्मिक वृत्ति के महापुरुष थे और इससे आपने अपने बढ़े हुए प्रभाव का उपयोग प्रायः प्रजाहित के कार्यों में किया। उन्होंने मुगल सम्राट् के द्वारा हिन्दुओं पर लगाये जानेवाले जजिया करको माफ करवाया। यह एक ऐसा कार्य या कि जिसके कारण चारों ओर उनकी बड़ी प्रशंसा हुई।
__ भण्डारी खींवसीजी जोधपुर के सर्वोच्च प्रधान के पद पर अधिष्ठित थे। ये बड़े सत्यप्रिय, निर्भीक और अपने स्वामी को सच्ची सलाह देनेवाले थे। महाराजा अजितसिंहजी के साथ एक समय मतभेद होने पर इन्होंने अपना पद त्याग दिया । पीछे संवत १७८१ में महाराजा अजितसिंहजी के पुत्र महाराजा अभयसिंहजी के गद्दी मशीन होने पर इन्हें फिर प्रधानगी का उच्च पद प्राप्त हुआ। संवत १७४२ में फिर किसी कारण वश आप प्रधान पद से जुदा हो गये, पर महाराजा अभयसिंहजी आपका इतना सम्मान करते थे कि आपने आपका प्रधानगी का तमाम लवाजमा ज्यों का त्यों कायम रखा । जब इसी साल जेठ बदी ६ को खींवसिीजी का देहान्त हुआ तब महाराजा अभयसिंहजी दिल्ली में थे । कहने की आवश्यकता नहीं कि खींवसी की मृत्यु का संवाद सुनकर वे बड़े दुःखित हुए। उनके शोक में महाराज साहब ने एक वक्त अपनी नौबत बंद रक्खी तथा आप स्वतः भण्डारी खींवसीजी के पुत्र अमरसिंहजी के डेरे पर मातम पुरसी के लिए पधारे । उन्होंने अमरसिंहजी को बड़ी सांत्वना दी और उन्हें अपने पिता खींवसीजी की जगह अधिष्ठित कर सिरोपाव, पालकी और हाथी पर बैठने का कुरुब प्रदान किया।
____ खींवसीजी ओसवाल जाति के महापुरुष थे। जोधपुर राज्य से उन्हें ऊँचे से ऊँचा सन्मान प्राप्त था । तत्कालीन मुगल सम्राट भी उनका बड़ा आदर करते थे। उनका इतिहास बहुत विस्तृत है, इसे हम आगे चलकर भण्डारियों के इतिहास में देंगे । इस वक्त सिर्फ ओसवाल जाति के राजनैतिक महत्व को दिखसामे के लिये हमने उनके एक दो महान् कार्यों का उल्लेख मात्र किया है। राय भण्डारी रघुनाथसिंह
महाराजा अजितसिंहजी के राज्य-काल में भण्डारी खींवसीजी की तरह ये भी एक महा शक्तिशाली पुरुष हो गये । ये दीवानगी के उच्चपद पर प्रतिष्ठित थे । इनमें शासन-कुशलता और रण-चातुर्य का अद्भुत् सम्मेलन हुआ था। इन्होंने गुजरात में महाराजा की ओर से कई युद्धों में बड़ी कुशलता से सेना का संचालन किया था । महाराजा अजीतसिंहजी ने गुजरात में की गई इनकी बड़ी २ करतबगारियों से प्रसन्न होकर, इन्हें कई खास रुक्के ( Certificates ) प्रदान किये थे । इन रुक्कों में उनके कार्यों की बड़ी प्रशंसा की गई है और गुजरात विजय का बहुत कुछ श्रेय उन्हें दिया गया है।
इसके अतिरिक्त जिस प्रकार खींवसीजी मे शाही दरबार में महाराज की ओर से बड़े २
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