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________________ नाहर बाबू गुलालचन्दजी दृष्ट-पुष्ट तथा बड़े निर्भीक थे। इन्होंने कई बार साहस के साथ भयानक खतरों का मुकाबिला किया। एक समय इन्होंने सारी रात अपनी पत्नी बीबी प्राणकुमारी के साथ डाकुओं के एक दल का सामाना किया और उन्हें खदेड़ दिया। सं० १९०७ में आपका स्वर्गवास हो गया । __आपके पश्चात् आपकी विधवा पत्नी श्रीमती प्राणकुमारी ने बाबू सिताबचन्दजी को तीन वर्ष की अवस्था में दत्तक लिया और जब तक वे होशियार न हो गये तब तक जायदाद की व्यवस्था और देख भाल स्वयं करती रहीं। इनका स्वर्गवास १९४६ में हुआ। रायबहादुर सिताबचन्दजी नाहर राय बहादुर सिताबचन्दजी का जन्म सं० १९०४ में हुआ। आप पटावरी गोत्र में उत्पन्न हुए थे। तीन वर्ष की उम्र में आप बाबू गुलालचन्दजी के नाम पर दत्तक लिये गये । आपका विवाह अजीमगंज निवासी बाबू जयचन्दजी वेद की पुत्री श्री गुलाब कुमारीजी से हुआ । आप हिन्दी और बंगला के अतिरिक्त संस्कृत और फारसी के अच्छे विद्वान् थे। संगीत और गायन कला में भी आपका अच्छा प्रवेश था। आपका विद्या-प्रेम अतीव सराहनीय था। सबसे पहिले आपने ही अजीमगंज में "विश्वविनोद" नामक प्रेस की स्थापना की और कई अच्छी २ धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित की । इन्होंने जायदाद की व्यवस्था बढ़ी योग्यता से की। इनके शिक्षा सम्बन्धी विचार भी बहुत उच्च थे। बंगाल के जैनियों में आपका परिवार आज भी विद्या और संस्कृति का उच्च आदर्श माना जाता है । समाज तथा गवर्नमेंट में आपकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। सं० १९३०-३१ में जब बंगाल में बहुत बड़ा दुर्भिक्ष पड़ा था, उस समय आपने अकाल पीड़ितों को बहुतं सहायता पहुँचाई थी। सं० १९३२ में भारत सरकार ने आपको 'राय बहादुर' की पदवी से सम्मानित किया। महारानी विक्टोरिया की जुबली के अवसर पर अपने ग्रामवासी भाइयों की उच्च शिक्षा के लिये अपनी मातेश्वरीजी से अनुमति लेकर आपने "बीबी प्राणकुमारी जुबली हाई स्कूल" नामक एक अवैतनिक उच्च विद्यालय खोला; किन्तु छात्रों की कमी के कारण यह संस्था आगे चलकर बंद हो गई। सम्राट् एडवर्ड के राज्यारोहण के समय भी आप को कई सार्टिफिकेट और सम्मान प्राप्त हुए। गवर्नमेंट की तरह समाज तथा जनता में भी आपका सम्मान कम न था। जैनियों के प्रसिद्ध केन्द्र अहमदाबाद में पाँचषी जैन कानफरेंस के अवसर पर आपने सभापति का आसन सुशोभित किया था । इसके अतिरिक्त अनेक संस्थाओं ने आपको मानपत्र दे देकर सम्मानित किया था। - बीवी मायाकुमारीजी का बनाया हुआ मन्दिर गंगास्त्रोत में नष्ट हो जाने पर मापने अजीमगंज में
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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