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________________ स्वर्गीय सैठ जुहारमलजी व गुलाबचन्दजी-आप सेठ रुक्मानन्दजी के तीनों पुत्रों में प्रथम - द्वितीय पुत्र थे। आपका जन्म क्रमशः संवत् १९०६ और १९०९ में हुभा था। आप बड़े वीर और तेजस्वी हो गये हैं। आपका स्वर्गवास क्रमशः संवत् १९५१ और १९६२ में हुआ। सठ उदयचन्दजी-आप श्री रुक्मानन्दजी के सबसे छोटे पुत्र हैं। आप बहुत सरल चित्त और मिलनसार हैं। आपका जन्म संवत् १९1 में हुभा। भापके तीन पुत्र और चार पुत्रियां हुई, जिनमें से २ पुत्र और । पुत्री अभी वर्तमान हैं। इस समय भापकी करीब ८० वर्ष की अवस्था है। स्वर्गीय तोलारामजी-भाप सेठ तेजपाबजी के एकमात्र पुत्र थे। भाप बड़े तेजस्वी, विधाम्यसनी और कर्म वीर पुरुष थे। भापका ध्यान पुरातत्व सम्बन्धी खोजों की ओर विशेष रहता था। भापने अपने पहाँ "सुराना पुस्तकालय" स्थापित किया, जिसमें इस समय संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, फारसी इत्यादि भाषाओं की हजारों छपी हुई पुस्तकों के अलावा करीब २५०० हस्तलिखित प्राचीन ग्रंथ (पुस्तकें) मौजूद हैं। भापका राज दरबार में भी अच्छा सम्मान था। आप शुरू म्युनिसिपल बोर्ड के आजीवन मेम्बर रहे और सन् १९११ ई० में जब बीकानेर राज्य में लेजिस्लेटिव एसेम्बली स्थापित हुई तब से आप इसके भी सदस्य रहे। श्री बीकानेर दरबार आपको बहुत मानते थे। एक बार आपने अपना एसेम्बली का पद एक अन्य सज्जन के लिए खाली कर दिया, तब भी दरबार ने अपनी ओर से आपको मनोनीत मेम्बर बना लिया। इस प्रकार आप लगातार १५ वर्ष तक एसेम्बली के सदस्य रहकर राजा और प्रमा की सेवा करते रहे। अन्त में जब लकवे से विवश होकर आपने अपने पद त्याग-पत्र दिया, तब महाराजा ने भापके पुत्र श्री शुभकरणजी को उम्मेदवार होने का विशेषाधिकार दिया (क्योंकि यहाँ पिता की मौजूदगी में पुत्र को मेम्बर बनने का अधिकार नहीं है ) आपका जन्म संवत् १९१९ में हुआ था। आपके चार पुनिये हुई, पुत्र एक भी नहीं हुआ। तब आपने श्रीऋद्धकरणजी के द्वितीय पुत्र श्री शुभकरसाजी को गोद लिया। संवत् १९८५ में आप अपने पुत्र श्री शुभकरणजी और पौत्र श्री हरिसिंहजी को छोड़कर स्वर्गवासी हो गये। आपका उपनाम चतुर्भुजजी था। स्वर्गीय सेठ ऋद्धकरणजी-सेठ वृद्धिचन्दजी के तीन पुत्रों में भाप सब से प्रथम थे। भाप बने प्रतापी पुरुष हुए । आपका नाम कलकत्ता की मारवाड़ी समाज मेंबहुत अग्रगण्य है। "तेजपाल वृद्धिचन्द" फर्म की विशेष उन्नति आप ही के जमाने में हुई। आप कुशल व्यापारी थे। आपने ही कलकत्ता की मारवाड़ी चेम्बर आफ कामर्स की स्थापना की और आजन्म उसके सभापति बने रहे। अखिल भारतवर्षीय श्वेताम्बर जैन तेरापंथी सम्प्रदाय की सभा की स्थापना भी आपने ही की और आजीवन उसके भी सभापति रहे । भाप चिरकाल तक हबदा के आमरेरी मजिस्ट्रेट रहे। सं० १९७५ में जब कपड़ा बहुत मांगा
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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