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बोसवाल जाति का इतिहास
ढहा नेमीचन्दजी विशेषकर गवालियर रहे, तथा वहाँ सेठ नथमलजी गोलेछा की दुकानों का काम देखते रहे। आपने फलौदी ने म्युनिसिपैलिटी कायम करने में अधिक परिश्रम किया, तथा आजीवन उसके सेक्रेटरी रहे। संवत् १९७५ में आप स्वर्गवासी हुए। आपने संवत् १९६५ में मद्रास में दुकान खोली थी। वह आपके स्वर्गवासी होने के बाद आपके पुत्रों ने उठा दी । सेठ नेमीचंदजी के प्रेमचन्दजी, हेमसिंहजी और ज्ञानचन्दनी नामक सीन पुत्र विद्यमान हैं। प्रेमचंदजी का जन्म संवत् १९५६ में हुआ। आप अपनी जावद दुकान की जमीदारी का काम देखते हैं। लाभग ५ हजार बीघा जमीन आपकी जमी-दारी की है। आप जावद में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट भी रहे थे। इनके पुत्र मदनसिंहजी तथा बभूतसिंहजी हैं।
ढहा हेमसिंहजी का जन्म १९५४ में हुआ। आपने जोधपुर से मेट्रिक पास किया । आरम्भ में आप १९८० तक मद्रास डर्गिस्ट स्टोभर के नाम से दवाइयों का व्यापार करते थे। वहाँ से आपको आपके श्वसुर फलौदी निवासी सेठ नेमीचंदजी गोलेछा ने अपनी सोलापुर दुकान का काम सम्हालने के लिए बुलाया । इसलिए इस समय आप इस फर्म के भागीदार हैं। आप विचारवान तथा उन्नतिशील युग के सदस्य हैं। आपके पुत्र महावीरसिंहजी हैं। हेमसिंहजी के छोटे भ्राता ज्ञानसिंहजी, डहा एण्ड कम्पनी मद्रास नामक फर्म पर कार्य करते हैं।
सुराणा सुराणा गौत्र की उत्पत्ति
सुराना गौत्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह किम्बदन्ति है कि इस गौत्र की उत्पत्ति जगदेव नामक एक सामंत से हुई है। ये तत्कालीन सिरपुर पाटन के राजा सिद्धराज जयसिंह के प्रतिहारी थे । ये बड़े वीर और पराक्रमी थे। इनके सात पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमशः सूरजी, सांवलजी, सामदेवजी, रामदेवजी, छारदजी वगैरह थे। ये लोग भी अपने पिता की मांति बढ़े वीर और साहसी व्यक्ति थे। यह वह समय था जब महम्मूद गजनवी का कातिल हमला भारत पर होरहा था। वह घूमता हुआ गुजरात की ओर भी आवा और उसने सिद्धपुर पाटन पर चढ़ाई की। इस समय जगदेव के प्रथम पुत्र सूरजी सेनापति के पद पर थे। उन्हें राज्य की रक्षा की चिन्ता हुई। इसी समय हेमसूरिजी महाराज वहां पधारे । सूरजी ने महाराज से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की। महाराज ने जैन धर्म स्वीकार करने की प्रतिज्ञा करवा कर विजय पताका यंत्र सूरजी को दिया । भुना पर यन्त्र को बांधकर सूरजी युन-क्षेत्र में गये । घमासान युद्ध