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श्रीसवाल जाति का इतिहास
उपरोक्त घटना ऐतिहासिक है और इससे यह पता लगता है कि आधुनिक जोधपुर के संस्थापक महावीर राव जोधाजी पर जब चारों ओर से विपत्ति के बादल मँडरा रहे थे और जब मारवाड़ राज्य का अस्तित्त्व खतरे में था उस वक्त जिन २ वीरों ने अपने प्राणों की परवाह न कर अत्यन्त प्रामाणिकता के साथ राव जोधाजी का साथ दिया था उनमें राव नराजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है ।
इसके आगे चल कर भी भण्डारियों का सितारा खूब चमका । संवत् १५४४ में भण्डारी नाथाजी ( नारमलोत) को प्रधानगी का प्रतिष्ठित पद प्राप्त हुआ । इसके कुछ ही समय बाद भण्डारी उदोजी ( नाथावत ) को प्रधानगी और दीवानगी प्राप्त हुई ।
इनके अतिरिक्त भण्डारी पन्नोजी, भण्डारी रायचन्दजी, भण्डारी ईसरदासजी, भण्डारी भानाजी, सिंघवी शाहमलजी आदि सज्जनों ने भी जोधपुर राज्य के २ पदों पर काम किया और ये वहाँ के राजनैतिक गगन मण्डल में खूब चमके । हमारे कहने का अर्थ यह है कि राव जोधाजी को अपने राज्य विस्तार के कार्य मैं ओसवाल वीरों एवं मुत्सुद्दियों से बड़ी सहायता मिली। इसके बाद राव गङ्गाजी तथा राव मालदेवजी के समय में भी ओसवालों एवं कुछ पंचोलियों ने दीवानगी और प्रधानगी के काम किये। महाराजा उदयसिंहजी एवं महाराजा सूरसिंहजी के राज्यकाल में भी ओसवाल मुत्सद्दी बड़े २ जिम्मेदारी के पदों पर थे।
इसके आगे चलकर महाराजा गजसिंहजी के समय में ओसवाल जाति के मुत्सद्दी बड़े २ पदों पर रहे । संवत् १६७७ में महाराजा गजसिंहजी को मुग़ल सम्राट की ओर से जालौर का परगना मिला। उस समय उन्होंने सुप्रख्यात इतिहास लेखक मुणोत नेणसीजी के पिता मुणोत जयमलजी को वहाँ का शासक (Governor) बना कर भेजा। उस समय जालौर परगने की वार्षिक आय २८७७५८ थी । इन्होंने अपना कार्य बड़ी ही योग्यता के साथ किया। इस पर महाराजा ने प्रसन्न होकर इन्हें हवेली, बाग और बहुत सी ज़मीन पुरस्कार रूप में दी। संवत् १६७८ के भादवा मास में युवराज खुर्रम ने सांचौर का परगना महाराजा गजसिंहजी को दिया । वह भी जालौर में शामिल कर लिया गया और दोनों परगनों के शासक (Governor) जयमलजी नियुक्त हुए। उन्होंने वहाँ बड़ी कुशलता से शासन किया ।
जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, कई ओसवाल मुत्सुद्दियों में शासन- कुशलता एवं वीरता का बड़ा ही मधुर सम्मेलन हुआ था । मुणोत जयमलजी भी इस श्रेणो के पुरुष थे। आप न केवल सफल शासक ही वरन् बड़े वीर तथा परोपकारी महानुभाव भी थे। इसके एक दो उदाहरण हम नीचे देते हैं।
जब महाराजा गजसिंहजी का सांचौर परगने पर अधिकार हुआ तब ५००० सिन्धियों ने सांचोर पर चढ़ाई कर दी। उस समय जयमलजी वहाँ के शासक थे । उन्होंने बड़ी बहादुरी से उनका
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