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लोढ़ा
लोढ़ा गौत्र की उत्पत्ति
लोदा गौत्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में महाजनवंशमुक्तावली में इस प्रकार की किम्बदन्ति लिखी हुई है कि पृथ्वीराज चौहान के सूबेदार देवड़ा चौहान वंशीय लाखनसिंह के कोई संतान न होती थी। इससे दुखित होकर उसने जैनाचार्य श्री रवीप्रभुसूरि से संतान के लिये प्रार्थना की, और जैनधर्म अंर्ग:कार किया। इनकी संतानें लोढ़ा कहलाई। इसी वंश की आगे चलकर ४ शाखायें हो गई जिनमें टोडरमलजी के वंशज टोडरमलोत छजमलजी के छजमलोत, रतनपालजी के रतनपालोत और भावसिंह के भावसिंहोत कहलाये ।*
रावरजा बहादुरशाह माधौसिंहजी लोढा का खानदान, जोधपुर
इस परिवार के पूर्वज शाह सुल्तानमलजी लोढ़ा (टोडरमलोत) नागौर में रहते थे और वहाँ जोधपुर राज्य की सेवा करते थे। इनके पुत्र शाहमलजी हुए।
___ रावरजा शमशेरबहादुर शाहमलजी लोढ़ा-आप इस खानदान में बहुत प्रतापी पुरुष हुए। संवत् १८४० के लगभग महाराजा विजयसिंहजी के कार्य काल में आप जोधपुर आये। जिस समय आप यहाँ आये थे, उस समय जोधपुर की राजनैतिक स्थिति बड़ी डाँवाडोल हो रही थी। आपको योग्य अनुभवी और बहादुर पुरुष समझकर दरबार ने फौज मुसाहिब का पद दिया । तदनंतर आपने कई युद्धों में सम्मिलित होकर बहादुरी के काम किये। संवत् १८४९ में आप गोडवाड़ प्रान्त के युद्ध में गये और इसी साल महारागा विजयसिंहजी ने प्रसन्न होकर जेठ सुदी १२ के दिन आपके बड़े भाई के लिए "रावरजा शमशेर बहादुर" की और छोटे भाई के लिए "राव" की पुश्तैनी पदवी प्रदान की। साथ ही दरबार ने आपको २९ हजार की जागीरी और पैरों में सोना पहिनने का अधिकार बख्शा। इसके अलावा आपको घड़ियाल और हाथी सिरोपाव भी इनाया किया गया। इस प्रकार विविध उच्च सम्मानों से विभूषित होकर संवत् १८५४ में आप स्वर्गवासी हुथे। आपके छोटे भ्राता राव मेहकरणजी जालौर के घेरे के समय बिलादे में केसरिया करके काम आये। आपके रिधमलजी एवं कल्याणमलजी नामक दो पुत्र हुए।
• लोदा गौत्र एक और है । ऐसा कहा जाता है कि चावा नामक एक माहेश्वरी गृस्य श्री वर्धमानसूरिजी के उपदेश से जैन हुआ। इनकी संतानें लोदा कहलाई।
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