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ओसवाल जाति का इतिहास
कोठारी कपूरचन्दजी -- -- आप जयपुर के प्रसिद्ध साहुकार थे । आप स्टेट को लाखों रुपये उधार दिया करते थे । आपको जयपुर स्टेट ने "सेठ" का पद और नाम के बाद "जी" लिखने का सम्मान बख्शा। संवत् १९०४ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके नाम पर आपके छोटे भ्राता तिलोकचन्दजी के पौत्र वरदीचन्दजी दत्तक आये ।
कोठारी बरदीचन्दजी — आपका जन्म संवत् १८९४ में हुआ । आप साहुकारी व्यापार के अलावा | स्टेट द्वारा सौपे हुए फौज के काम को भी देखते थे। आगरे में २४ सालों तक आप बंगाल बैंक के 'खजानची रहे। इससे बैंक ने आपको एक उत्तम सार्टिफिकेट दिया । संवत् १९५६ के अकाल के समय आप स्टेट द्वारा बनाई गई सहायता कमेटी के मेम्बर और खजांची थे । आपने अपनी बुद्धिमानी और शौकीनी से जनता, राज्य और ओसवाल जाति में अच्छी इज्जत पाई थी । संवत् १९६९ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके केवल चन्दजी, हुकुमचन्दजी और चांदमल नामक ३ पुत्र हुए ।
कोठारी चांदमलजी - आपका जन्म १९२० में हुआ। आपने सन् १८९२ में अजमेर में आइस फेक्टरी खोली, जो सन् १९१५ तक काम करती रही । सन् १९०१ में अजमेर में आयर्न एण्ड ब्रास फाउण्डरी, सन् १९१२ में मंडावर में एक जिनिंग फेक्टरी और सन् १९२७ में जयपुर में एक आइस फैक्टरी खोली । ये सब फेक्टरियां इस समय काम कर रही हैं । आपके सुमेरचन्दजी तथा समीरचन्दजी और आपके बड़े भ्राता हुकुमचन्दजी के उत्तमचन्दजी और संतोषचन्दजी नामक पुत्र हुए । उत्तमचन्दजी शांत स्वभाव के समझदार सज्जन हैं, तथा फर्म और कारखानों का तमाम काम योग्य रीती से चलाते हैं । कोठारी संतोषचन्दजी केवलचन्दजी के नाम पर दत्तक गये हैं । आप साहुकारी व्यापार में भाग लेते हैं । यह परिवार जयपुर की ओसवाल समाज में प्राचीन तथा प्रतिष्ठित माना जाता है । इसी प्रकार इस खानदान में कोठारी मूलचन्दजी के परिवार में रिखबचन्दजी, सरूपचन्दजी, रूपचन्दजी और केशरीचन्दजी विद्यमान हैं । केशरी चन्दजी जवाहरात का व्यापार करते हैं । त्रिलोकचन्दजी के पौत्र पेमचन्दजी जयपुर स्टेट के नायव दीवान के पद पर कार्य्यं कर चुके हैं। अभी इनके भतीजे भागचंदजी मौजूद हैं। रायचंदजी के परिवार में गोकुलचंदजी और उनके पुत्र जवाहरात का व्यापार करते हैं तथा कोठारी सर्वसुखजी के पौत्र अगरचंदजी, मिलापचंदजी और हीराचंदजी साहुकारी का कार्य करते हैं। हीराचंदजी को दरवार में कुर्सी प्राप्त है। आप एफ० ए० में पढ़ रहे हैं।
सेठ हजारीमल हुलासचन्द कोठारी सुजानगढ़
करीब ७० वर्ष पूर्व सेठ धरमचन्दजी सुजानगढ़ आकर बसे । यहाँ आपके गुलाबचन्दजी नामक आप लोग यहीं साधारण देन लेन का व्यापार करते रहे। सेठ गुलाबचन्दजी के दो पुत्र
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पुत्र हुए ।