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श्रीसवाल जाति का इतिहास
हुआ । कोठारी समीरसिंहजी के दत्तक पुत्र सुगनचन्दजी का जन्म संवत १९३१ में हुआ । आप जावद, ( गवालियर) आदि जगहों के तहसीलदार रहे। इस समय आप भेंसरोड़ के कामदार' | आपके शिवसिंहजी और सरदारसिंहजी नामक दो पुत्र हैं। श्री शिवसिंहजी बी० कॉम • बिड़ला शुगर फेक्टरी सिहोरा (बिजनौर) के मैनेजर तथा सरदारसिंहजी बी० कॉम० इसी फेक्टरी के केमिस्ट हैं । कोठारी वल्लभसिंहजी के पुत्र दलेल - सिंहजी इस समय रेलवे में सर्विस करते हैं ।
कोठारी छतर सिंहजी के पाँच पुत्र हुए। इनमें से बड़े पुत्र कल्याणसिंहजी मसूदा और रायपुर (मारवाड़) के कामदार रहे। छतरसिंहजी के परिवार में इस समय किशोरसिंहजी गंगापुर में, माणकचंदजी और सुलतानचन्दजी मसूदे में और भोपालसिंहजी जयपुर में निवास करते हैं। इसी प्रकार कोठारी सावंतसिंहजी के पौत्र लक्ष्मीसिंहजी लादुवास (मेवाड़) में कामदार हैं।
कोठारी बलवन्तसिंहजी भी मसूदे के कामदार रहे। आपके किशनसिंहजी, विशनसिंहजी तथा माधौसिंहजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें माधौसिंहजी विद्यमान हैं। किशनसिंहजी के पुत्र शक्तिसिंहजी और नाहरसिंहजी रेलवे में सर्विस करते हैं। कोठारी माधौसिंहजी के दलपतसिंहजी, दरयावसिंहजी, गुलाबसिंहजी तथा केशरीसिंहजी नामक चार पुत्र हैं। इनमें से दलपतसिंहजी उदयपुर में कोठारी मोतीसिंहजी के नाम पर दत्तक गये हैं। दरयावसिंहजी देवगढ़ तथा भींडर में मजिस्ट्रेट तथा शेष पोलिस में सर्विस करते हैं। इसी तरह कोठारी सालमसिंहजी के पौत्र नरपतसिंहजी तथा दौलतसिंहजी अजमेर में ही निवास करते हैं कोठारी भगवंतसिंहजी के पुत्र मोहकमसिंहजी, अभयसिंहजी तथा उगमसिंहजी और पौत्र जैतसिंहजी, उमरावसिंहजो, भेरूसिंहजी, धनपतिसिंहजी और मोहनसिंहजी विद्यमान हैं। इसी प्रकार कोठारी समरथसिंहजी के पौत्र अनराजजी भीलवाड़े में रहते हैं ।
सेठ मूलचन्द जावंतराज खीचिया ( कोठरी )
इस रणधीरोत कोठारी परिवार के पूर्वज उदयपुर में निवास करते थे । यह परिवार उदयपुर से मेड़ता कुंभलगढ़, होता हुआ घाणेराव आया । कोठारी देवीचन्दजी घाणेराव में निवास करते थे, आप के नरसिंहदासजी, अमरदासजी और करमचन्द्रजी नामक ३ पुत्र हुए, इनमें करमचन्दजी के परिवार में इस समय सेठ नेनमलजी कोठारी, शिवगंज में रहते हैं ।
कोठारी नरसिंहजी के समय में इस खानदान का व्यापार पाली में होता था। आप घाणेराव के भोसवाल समाज में मुख्य व्यक्ति थे । इनके सागरमलजी, निहालचन्दजी तथा सूरजमलजी नामक ३ पुत्र हुए। ये तीनों आता व्यापार के लिये संवत् १९३४ में बम्बई गये, और सागरमल निहालचन्द के नाम
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