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प्रोसवाल जाति का इतिहास
सेठ तेजमल हीराचन्द बापना, सादड़ी इस खानदान के पूर्वज वापना फत्ताजी के पुत्र गंगारामजी ने संवत् १८५० के लगभग अपनी दुकानें रतलाम और इन्दौर में खोली । इनपर अफीम का व्यापार होता था । इस व्यापार में आपने अच्छी सम्पत्ति कमाई थी । आपका स्वर्गवास सम्वत् १४८५ में हुभा । उस समय आपके पुत्र बापना भलमचंदजी नाबालिग थे, अतएव सब दुकाने उठा दी गई। मालमचंदजी के हंसराजजी, पूनमचन्दजी, हुकमीचन्दजी, निहालचन्दजी, हजारीमलजी तथा तेजमलजी नामक ९ पुत्र हुए । इनमें हंसराजजी के पुत्र बालचन्दजी, बालचंद बख्तावरमल के नाम से मुजफ्फरपुर में व्यापार करते हैं। हुकमीचन्दजी के पुत्र सागरमलजी कलकत्ते में व्यापार करते हैं, इनके पुत्र फूलचन्दजी सादड़ी के पहिले ओसवाल मेट्रिक्यूलेट हैं।
बापना आलमचन्दजी के सबसे छोटे पुत्र तेजमलजी ने संवत् १९५० में भयंदर (बम्बई) में दुकान खोली । आप विद्यमान है। भापके हीराचंदजी, चुक्षीलालजी तथा फूटरमलजी नामक तीन पुत्र है। पापना हीराचन्दजी का जन्म १९४९ में हुआ। आपने १९६४ में कोयम्बटूर में 'हीराचंद चुनीलाल के नाम से जरी काठी का व्यापार शुरू किया। संवत् १९८० में बापमा हीराचंदजी ने सादड़ी में सर्व प्रथम "वईमान तप की ओली" की । इसमें भापने लगभग ५० हजार रुपये लगाये । सादड़ी की तमाम धार्मिक संस्थानों में आपका सहयोग रहता है। भाप “धर्मचंद दयाचंद" फर्म, और श्री आत्मानन्द जैन विद्यालय कमेटी के मेम्बर हैं । इसी प्रकार न्यात का नोहरा और पांजरापोल के सेक्रेटरी हैं। भापके छोटे भाई चुचीलालजी व्यापार में सहयोग लेते हैं और फूटरमलजी, वापना हिम्मतमलजी के यहाँ दत्तक गये हैं।
सेठ लालचंद जेठमल बापना, अमलनेर - इस परिवार का मूल निवास स्थान खिचंद (मारवाड़) है। भाप स्थानकवासी भाम्नाय के माननेवाले हैं। इस परिवार के पूर्वज सेठ मगनीरामजी के हीरचंदजी, सुजानमलजी, गंदमलजी, भगरचंदजी तथा माणकचंदजी नामक ५ पुत्र हुए । इन बन्धुओं में से सेठ सुजानमलजी, चांदमलजी अगरचन्दजी तथा माणकचन्दजी संवत् १९३५ में व्यापार के लिये मद्रास गये, तथा वहां गिरवी का व्यापार शुरु किया। सेठ चांदमलजी छोटी वय में ही स्वर्गवासी हो गये। संवत् १९५७ तक इन बन्धुओं का कारवार मद्रास में रहा।
सेठ सुजानमलजी विद्यमान हैं। आपकी वय ७१ साल की है। आपके पुत्र कालचन्दजी, जेठमलजी तथा जसराजजी हैं। इनमें लालचन्दजी, चांदमलजी के नाम पर दत्तक गये हैं। भापका जन्म
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