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श्रीसवाल जाति का इतिहास
दस दस लाख रुपया बाकी रहते थे। इसके सिवाय बून्दी और टोंक से भी आपका व्यवहार बहुत बढ़ा जिसके परिणाम स्वरूप बून्दी से आपको रायथल और टोंक से खुर्रा गांव जागीर में मिला ।
सेठ बहादुरमलजी के समय में अंग्रेज गवर्नमेण्ट और देशी रियासतों के बीच अहदनामे होने में बड़ी झंझटें हो रही थीं । कहना न होगा कि इन समस्याओं को सुलझाने में सेठ बहादुरमलजी और इनके छोटे भाई जोरावरमलजी ने बड़ी सहायता पहुँचाई । इनके इस कार्य्यं से प्रसन्न होकर गवर्ननेण्ट ने सेठ बहादुरमलजी को देवली एजेन्सी का खजानची मुकर्रर किया की छड़ी, अडानी, छत्ते, मियाना, पालकी, ताम जाम, हाथी, तथा कई पट्टे परवाने भी मिले ।
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तथा कोटा रियासत से भी आपको चांदी घोड़ा मय सोने के साज के और जागीरी
सेठ बहादुरमलजी की धार्मिक प्रवृत्ति भी बहुत बढ़ो चढ़ी थी। ऊपर बापना परिवार के जिन धार्मिक कार्यो का उल्लेख किया गया है, उनमें तो सेठ बहादुरमलजी सम्मिलित थे ही, उनके अलावा भी इन्होंने व्यक्तिगत रूप से कई कार्य किये, और अन्त में शत्रुंजय का एक बड़ा संघ निकालने का भी विचार किया, मगर उस विचार के पूर्ण होने के पूर्व ही वि० सं० १८८२ में आपका स्वर्गवास होगया ।
सेठ दानमलजी - सेठ बहादुरमलजी के कोई पुत्र न होने से आप अपने भ्राता सेठ मगनीरामजी
के पुत्र सेठ दानमलजी को अपना उत्तराधिकारी बना गये और उनको अपने धर्म संकल्प अर्थात् शत्रुंजय यात्रा का संघ निकालने का आदेश कर गये । सेठ दानमलजी भी बड़े धर्मनिष्ठ और प्रतापी पुरुष हुए। आपने सेठ बहादुरमलजी के कार्य को बड़ी योग्यता से संचालित किया । इन्हीं के समय में संवत् १९०९ में पाँचों भाइयों का यह सम्मिलित परिवार अलग २ हुआ, जिसके अनुसार कोटे का कारवार सेठ दानमलजी के, झालावाड़ का सेठ सवाईरामजी के, रतलाम का सेठ मगनीरामजी के, उदयपुर का सेठ जोरावरमलजी के और इन्दौर का सेठ परतापचंदजी के जिम्मे हुआ । इस प्रकार कारोबार विभक्त हो जाने पर सेठ दानमलजी स्वतन्त्र रूप से कोटे में अपना व्यापार करने लगे । आपने भी कोटा रियासत में कई प्रकार के सम्मान और जागीरी प्राप्त की। जिसके परवाने अभी भी आपके वंशजों के पास विद्यमान हैं ।
सेठ दानमलजी की धर्म पर भी अधिक रुचि थी। उधर आपको अपने पिता की आज्ञा पालन करने का भी पूरा ख्याल था । इसीसे आपने शत्रुञ्जय यात्रा का संघ निकालने का निश्चय करके अपने चारों काकाओं को उदयपुर, झालरापाटन, इन्दौर और रतलाम से बुलवाये और संघ निकालने की पूरी तैयारी की। संघ के कर्ता धर्ता आप ही थे अतएव संघपति की माला आपको ही पहिनाई गई । इस संघ की हिफाजत के लिए अंग्रेज सरकार, उदयपुर, इन्दौर, टोंक, बूँदी, जैसलमेर और कोटा ने अपने अपने खर्चे से फौजें भेजी। इसमें सबसे ज्यादा फौज कोटा राज्य की थी १००० पैदल की पल्टन
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