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श्रीसवाल जाति का इतिहास
थे। आपके लखमीचन्दजी, फूलचन्दजी, बाबूलालजी और पदमचन्दजी नामक ४ पुत्र हुए, इनमें से पदमचन्दजी, लाला मोतीलालजी के नाम पर दत्तक गये । लाला बाबूलालजी विद्यमान हैं। आपके ५ पुत्र तथा पदमचन्दजी के १ पुत्र है । आपके यहाँ आरम्भ से ही बैंकिग, गोटा तथा जवाहरात का व्यापार होता है ।
सेठ दीपचन्द पाँचूलाल वेद, फलोदी
वेद मुकुन्दसिंहजी के पुत्र रासोजी सम्वत् १६८१ में फलोदी आये, इनकी ८वीं पीढ़ी में सेट पूनमचन्दजी हुए । आपके रेखचन्दजी, जुहारमलजी और दीपचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें सेठ जुहारमलजी ने सम्बत् १९४३ में धमतरी में रेखचन्द जुहारमल के नाम से दुकान की, तथा सब भाइयों ने मिलकर व्यापार की तरक्की की । रेखचन्दजी के पुत्र लाभचन्दजी विद्यमान हैं । वेद जुहारमलजी के पुत्र सुगनचन्दजी तथा पौत्र राजमलजी चम्पालालजी और पाँचूलालजी हुए । इनमें पाँचूलालजी, दीपचन्दजी के नाम पर दसक गये । सम्बत् १९८८ में दीपचन्दजी का स्वर्गवास हुआ । इनकी धर्मपत्नी श्री धूलीबाई ने अपने स्वर्गवासी होने के समय एक संघ निकालने की थी इच्छा प्रगट की अतएव इनके पुत्र पांचूलालजी ने संवत् १९८९ की माघसुदी ९ को फलोदी से जेसलमेर के लिये एक संघ निकाला । इस संघ में १८०० यात्री २१ साधू और ६८ साध्वियां थीं। इसमें सवारी के लिये ५३४ गाड़ियाँ तथा १४७ ऊँट थे । इस इस संघ में लगभग ५० हजार रुपये व्यय हुए ।
सेठ सुगनचन्द रतनचन्द वेद, बरोरा
इस परिवार के सेठ पोमचन्दजी वेद सम्बत् १९३५ के पूर्व अपने निवास बीकानेर से हिंगनघाट आये, तथा यहाँ से नागपुर आकर सेठ अमरचन्द गेंदचन्द गोलेछा के यहाँ मुनीम रहे। इनके पुत्र सुगनचन्दजी वेद सम्बत् १९४४ में बरोरा गये तथा वहाँ सेठ अमरचन्द सिंधकरण गोलेछा की भागीदारी में कारबार शुरू किया । सम्बत् १९७९ तक सम्मिलित कारवार रहा, इस व्यापार को सुगनचन्दजी वेद के हाथों से अच्छी उन्नति मिली । पश्चात् उपरोक्त नाम से आपने अपनी स्वतन्त्र दुकान की । बरोरा तथा भादंकजी के तीर्थों के कार्यों में भी आप सहयोग लिया करते थे । ११ को आपका स्वर्गवास हुआ ।
सम्बत् १९८९ की काती सुदी
इस समय सुगनचन्दजी वेद के पुत्र रतनचन्दनी, सागरमलजी तथा फूलचन्दनी मेसर्स सुगनचन्द रतनचन्द के नाम से गल्ला तथा कमीशन का काम करते हैं । आप मन्दिर मार्गीय आमनाय के मानने वाले हैं ।
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