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________________ ओसवाल जाति का इतिहास इसमें करीब ३०० जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा की। जिसकी प्रशस्ति आज भी उस मन्दिर में लगी हुई है। इन सूरिजी ने 'जिन सत्तरी प्रकरण; और अपवर्गनाममाला नामक ग्रन्थों की रचना की। इन प्रन्थों में आपने अपने गुरु का नाम श्रीजिनवल्लभ, श्री जिनदत्त और श्रीजिनप्रिय बतलाया है। श्री जिनचन्द्रसूरि ___श्री जिनचन्द्रसूरि श्री जिनमाणिक्य सूरि के शिष्य थे। आपका जन्म संवत् १५९५ में हुआ। संवत् १६०४ में आपने दीक्षा ग्रहण की। संवत् १६१२ में आप सूरिपद पर प्रतिष्ठित हुए। आपको बादशाह अकबर ने युग प्रधान का पद प्रदान किया था । - अकबर का दरबार भिन्न २ प्रकार के दर्शन शास्त्रियों, विद्वानों और राजनीति-दक्ष पुरुषों से भरा रहता था। उसकी विद्या रसिकता और धार्मिक स्वाधीनता अतुलनीय थी। बीकानेर के सुप्रसिद्ध बच्छावत कर्मचन्द भी उसके दरबार में आया जाया करते थे। एक दिन अकबर बादशाह ने पूछा कि इस समय जैनियों में सब से प्रभावशाली आचार्य कौन है, उत्तर में किसी ने आचार्य जिनचन्द्रसूरि का नाम उसको बतलाया और यह भी बतलाया कि कर्मचन्द बच्छावत उनके शिष्य हैं, तब बादशाह ने कर्मचन्दजी को हुक्म दिया कि वे आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि को लाहौर में लावें । बादशाह की आज्ञा से कर्मचन्दजी आचार्य श्री को लाहौर में लाये। बादशाह अकबर ने आपका बहुत सम्मान एवम् स्वागत किया। बादशाह के आग्रह से आचार्य श्री ने लाहौर ही में चातुर्मास किया। आचार्य श्री के उपदेश का अकबर के ऊपर बहुत प्रभाव पड़ा और आचार्य श्री के कहने से उसने द्वारका और शत्रुज्जय के सब जैन मन्दिरों की व्यवस्था कर्मचन्दजी बच्छावत् के सिपुर्द करदी और उसका लिखित फरमान अपनी मुद्रा से अतित कर आजमखाँ को दिया और कहा कि सब जैन तीर्थ कर्मचन्द को बक्ष दिये हैं, उनकी रक्षा करो। जब अकबर काश्मीर जाने लगा तो उसने पहले मन्त्री के द्वरा श्री जिनचन्द्रसूरिजी को बुलाकर उनसे धर्म-लाभ लिया। इसके उपलक्ष्य में भसाद सुदी ९ से लेकर सात दिन पर्यंत सारे साम्राज्य में जीवहिंसा न की जाय इस आशय का फरमान निकाल कर अपने ग्यारह सूबों में भेज दिया । बादशाह के इस हुक्म को सुनकर उसको खुश करने के लिये उसके अधीनस्थ राजाओं ने भी अपने २ राज्य की सीमा में कहीं पंद्रह दिन,कहीं बीस दिन और कहीं एक मास सक जीव हिंसा न करने का फरमान निकाला। इसी सिलसिलेमें बादशाह अकबरने इन्हें युग प्रधान का पद प्रदान किया और उनके शिष्य मानसिंह को आचार्य पद प्रदान करके उनका नाम जिनसिंहसूरि रक्खा । अकबर के पश्चात् संवत् १६६९ में जहाँगीर बादशाह ने हुक्म निकाला कि सब दर्शनों के साधुओं को देश से बाहर निकाल दिया जाय । इससे जैन मुनि मण्डल में बहुत भय हो गया । तब श्री जिनचन्द्रसूरि मे पान
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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