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वेद- मेहता
बदी ३ को नियुक्त किये गये थे । इसके अतिरिक्त जोधपुर दरबार ने आपको हाथी सिरोपाव प्रदान किया था । आपकी कलकत्ता, हैदराबाद, पूना, उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, इन्दौर, टोंक, उज्जैन वगैरा स्थानों में दुकानें थीं । आपका शाही ठाटबाट था । आपने अपने भाइयों के साथ सम्वत् १९०५ में गोड़ी पार्श्वनाथजी का मन्दिर व धर्मशाला बनवाई । आप सम्वत् १९२६ में स्वर्गवासी हुए। आपके नाम पर आपके छोटे भ्राता इन्द्रमलजी के पुत्र कानमलजी दत्तक लिये गये । आप भी अल्पायु में ही स्वर्गवासी हुए। आपके नाम पर मेहता सोभागमलजी बीकानेर से दत्तक लिये गये ।
मेहता सोभागमलजी – आपका जन्म सम्वत् १९२६ में हुआ । ८ साल की वय में आप बीकानेर से दत्तक आये । उस समय बीकानेर दरबार की ओर से आपको सोना और बाज़िम बख्शा गया था । इसके अतिरिक्त जोधपुर दरबार की ओर से आपको तीन बार पालकी सिरोपाव प्राप्त हुए। इतना ही नहीं बल्कि जोधपुर नरेश सरदारसिंहजी के विवाह के समय महाराजा सर प्रतापसिंहजी ने आपको विवाह में सम्मिलित होने के लिये पत्र व तार द्वारा निमंत्रित किया था। अजमेर में आपकी बहुत-सी स्थायी सम्पत्ति है । आपके पास प्राचीन तस्वीरें, जेवर, हथियार, चीनी का सामान और शाही जमाने की लिखित पुस्तकों का संग्रह है, जिन्हें देखने के लिये कई पुरातत्व वेत्ता व गण्य मान्य अंग्रेज़ आपकी हवेली पर आते रहते हैं । आपकी तस्वीरें बिलायत के एक्सीवीजन में भी गई थीं । गोड़ी पार्श्वनाथजी के मंदिर की व्यवस्था आपके जिम्मे है । आपके जीतमलजी, हमीरमलजी और समरथमलजी नामक तीन पुत्र हैं । जीतमलजी ने बी० ए० तक अध्ययन किया है ।
इस परिवार में मेहता चन्द्रभानजी के चौने पुत्र मोतीरामजी की संतानों में इस समय मेहता रघुनाथमलजी तथा जेठमलजी अजमेर में, वख्तावरमलजी ब्यावर में तथा भगोतीलालजी और गणेशमलजी जोधपुर में निवास करते हैं । मेहता बख्तावरमलजी पहले झालावाड़ स्टेट में कस्टम सुपरिण्टेण्डेण्ट थे । आपको कई अंग्रेज़ों से अच्छे सार्टिफिकेट मिले हैं वहाँ से रिटायर होकर वर्तमान में आप रतनचन्द संचेती फैक्टरी ब्यावर के मेनेजर हैं । आपके पुत्र अभयमलजी आगरे में व्यापार करते हैं ।
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वेद मेहता बुधकरणजी का खानदान, अजमेर
इस परिवार का इतिहास वेद मेहता खेतसीजी के पौत्र मेहता वखतमलजी से प्रारम्भ होता है । मेहता वखतमलजी से पहले का विस्तृत परिचय हम इसके ऊपर दे चुके हैं ।
मेहता लालचन्दजी — मेहता वखतमलजी के लालचन्दजी तथा उम्मेदचन्दजी नामक दो पुत्र - हुए । मेहता लालचन्दजी व्यापारकुशल व्यक्ति थे । आप सम्बत् १८३० में गवालियर गये । वहाँ जाकर आपने झाँसी, फरुखाबाद, मिर्जापुर, भोपाल, जयपुर आदि स्थानों में सराफी दुकानें स्थापित कीं । आपका देहान्त सं० १८५१ में सतवास ( गवालियर) में हुआ, जहाँ पर आपकी छतरी बनी हुई है । सं० १९२२ तक आपके परिवार की ओर से उक्त स्थान पर सदावृत बंटता रहा। आपके छोटे भाई मेहता उम्मेदचन्दजी बड़े धार्मिक पुरुष थे । आपका जोधपुर दरबार से एवं मेड़ते के आसपास के बड़े २ जागीरदारों से लेन देन का सम्बन्ध था | जोधपुर दरबार ने १८५३-६० और ६३ में खास रुक्क े देकर सम्मानित किया था । आप सं० १८६९
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