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________________ बेद-मेहता भापके तीन पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः पा० ऋधकरणजी, सागरमलजी, एवं मांगीलालजी हैं । ऋधकरणजी व्यापार में भाग लेते हैं तथा शेष पढ़ते हैं। बा० चम्पालालजी-भापका जन्म संवत् १९९१ में हुआ। आप बड़े योग्य, व्यापार कुशल तथा मिलनसार सजन हैं। आप ही इस फर्म के कार-मार को बड़ी योग्यता से संचालित कर रहे हैं । आप ही के द्वारा इस फर्म का बहुत सी अंग्रेजी फमों के साथ कारवार होता है । आपका बहुत से बड़े २ अंग्रेजों से परिचय है। आप ही के द्वारा इस के साथ अंग्रेजों का सम्बन्ध स्थापित हुआ है। आपकी बड़े गवर्नमेंट अफसरों, गवर्नरों तथा उच्चपराधिकारियों से पर्सनल मैत्री है। इस परिवार की भोर से श्री जैन श्वेताम्बर तेरा पंथी सभा तथा स्कूल और वि० स० विद्यालय और औषधालय आदि संस्थानों को भी काफी सहायता प्रदान की गई है। हाल ही में राजलदेसर गांव में वेद परिवार प्रधगुना कुआ नामक एक जीर्ण शीर्ण कुए का आप लोगों ने जीर्णोद्धार करवाया जिसमें आपने हजारों रुपये लगाये। यह परिवार इस समय सारा समिलित रूप से रहता तथा सम्मिलित रूप से ही व्यवसाय करता है। ऐसे बड़े परिवार वालों का बड़े स्नेह से सम्मिलित रूप से रहना प्रशंसनीय है। इस परिवार की राजलदेसर में बहुत सुन्दर हवेलियां बनी हुई है। इसी प्रकार काडनू नामक स्थान में भी भपकी एक पहुत बड़ी हवेली बनी हुई है। सेठ मेघराजजी का परिवार इस परिवार का पूर्व परिचय हम ऊपर लिख ही चुके हैं। सेठ मेघराजजी सेठ उम्मेदमलजी के तीसरे पुत्र थे । भाप भी बड़े प्रतिभा सम्पन्न पुरुष थे । आपने हजारों लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। आपका स्वर्गवास हो गया । आपके तीन पुत्र हुए। इनके नाम क्रमशः सेठ छोगमलमी, सेठ उमचन्दजी और सेठ तनसुखरायजी थे । आप तीनों ही भाता अलग २ हो गये । इस समय आप तीनों का परिवार अलग २ रूप से व्यापार कर रहा है। जिनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है। - सेठ छोगमलजी-आपने अपने भाईयों से भलग होकर फर्म की भन्छी उन्नति की । भापने बडंगाबाद (मुर्शिदाबाद ) में अपनी फर्म स्थापित की जो आज करीब १०० वर्षों से चल रही है। इस समय यहां जा, दुधनदारी और जमींदारी का काम हो रहा है। इसके पश्चात् ही आपने कलकत्ता १५ नारमल महिपा केन में अपनी फर्म खोली । इस पर इस समय जूट, कमीशन एजेन्सी और बैंकिंग का व्यापार हो रहा है। भापका स्वर्गवास संवत् १९७३ में हो गया। भापके इस समय सेठ मन्नालालजी एवं कालूराम
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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