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वेद मेहता
वेद मेहता गौत्र की उत्पत्ति
कहा जाता है कि जब अट्ठारह जाति के राजपूत लोग आचार्य श्री रत्नप्रभुसूरिजी के उपदेशों से प्रभावित होकर ओसबाळ हुए, उस समय उनमें राजा उपलदेव भी एक थे । ये पंवार जाति के राजपूत राजा थे। इन्हीं उपलदेव की संतान आचार्य श्री के द्वारा श्रेष्ठी गौत्र में दीक्षित हुई। इनकी कई पुश्तों के पश्चात् इसी वंश में संवत् १२०० के करीब दुल्हा नामक एक प्रसिद्ध व्यक्ति हुए । इनके पितामह वैध का काम करते थे । ऐसी किम्वदन्ती है कि एक बार चित्तौड़ के तत्कालीन महाराणा की रानी की आँखे खराब हो गई । उस समय बहुत से व्यक्ति इलाज करने के लिये आये, मगर सब निषफल हुए । इसी समय दुल्हाजी भी मुनि श्री जिनदत्तसूरिजी के द्वारा प्राप्त दवाई को लेकर राज महल में गये और अपनी दबाई से महारानी के चक्षु ठीक कर दिये । यह देख महाराणा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने दुल्हा को वेद की पदवी प्रदान की । इसी समय से इनका श्रेष्ठी गौत्र बदल कर वेद गौत्र हुआ । इसके पश्चात् इस परिवार के लोगों का राज्य में विशेष काम काज रहा । इसीसे इन्हें मेहता पदवी मिली। तभी से ये वेद मेहता कहलाते चले आ रहे हैं 18
वेद मेहता परिवार बीकानेर
कहना न होगा कि इस परिवार का इतिहास बड़ा गौरवमय और कीर्ति शाली रहा है । इस परिवार के महापुरुषों ने क्या राजनीति क्या समाजनीति और क्या युद्धनीति, सभी क्षेत्रों में ऐसे २ आश्चर्य जनक कार्य कर दिखाये हैं, जिससे किसी भी जाति का इतिहास उज्वल हो सकता है। इन सब बातों का परिचय पाठकों को समय २ और स्थान २ पर मिलने वाले परिचयों से प्राप्त हो जायगा ।
संवत् १४५० के करीब की बात है मंडोवर नगर में राठोड़ वंशीय राव चूंडाजी राज्य करते थे । उस समय इस परिवार के पुरुष मेहता खींवसीजी राव चूंडाजी के दीवान थे । करीब २ इसी समय का जिक्र है कि राव चंडाजी को मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा कुम्भाजी ने आक्रमण करके मण्डोवर से बेदखली कर दिया था । इसी समय मेहता खींवसीजी मे बड़ी बहादुरी और बुद्धिमानी से युद्ध कर अपनी कारगुजारी एवम् होशियारी के द्वारा फिर से मंडोवर नगर पर अपने स्वामी का अधिकार करवाया था ।
● ऐसा भी कहा जाता है कि उपलदेव के पुत्र वेदाजी से वेद गौत्र की उत्पत्ति हुई ।
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