________________
.
मोसवाल जाति का अभ्युदप रमांशाह हुआ, जिसका शिलालेख शगुंजय तीर्थ पर भाविनाथजी के मन्दिर में पाया जाता है। इसके अन्दर के दो श्लोक हम यहाँ उद्धत करते हैं।
इतश्च गोपाह गिरौ गरिष्टः श्री बप्पमट्टी प्रतिबोधितश्व, . . श्री आमराजोऽ जनि तस्य पनी काचित्व भूव व्यवहारी पुत्री ॥ ८॥ तत्कुक्षिजाताः किल राज कोटगाराह गोत्रे सुकृतैक पात्रे ।
श्री ओसवंशे विशदे विशाले तस्यान्वयेऽमि पुरुषाः प्रसिद्धः ॥ १ ॥ इन आचार्य श्री का स्वर्गवास सम्वत् ८९५ में हुआ। श्री नेमिचन्द्रसूरि
श्री नेमिचन्दसूरि का समय संवत् ९५० के आसपास होना पाया जाता है। महाजनवंश मुकाबली में हमको उद्योतमसूरि के गुरू लिखा है। कहा जाता है कि इनके समय में मालव देश में तंवरों का राज्य था । ये आचार्य भी बड़े प्रतिभाशाली एवम् भोसवाल जाति को अभ्युदय प्रदान करनेवालों में से थे। इन्होंने संवत् ९५४ में बरदिया गौत्र की स्थापना की। भी बर्दमानसूरि
श्री वर्धमानसूरि का समय संवत् १००० से लेकर संवत् १०८८ तक पाया जाता है। इनका एक प्रतिमा लेख कटिग्राम में संवत् १०४५का लिखा हुआ मिला है । इन्होंने संवत् १०५५ में हरिश्चन्द्रसूरि कृत “उपदेश पद" नामक ग्रंथ की टीका रची। ऐसा मालूम होता है कि 'उपमिति भव प्रपचा माम समु. प" और "उपदेश माला बृहद्” नामक कृतियाँ भी इन्होंने रची थीं। ये चन्द्रगच्छ के थे। इन्होंने संवत् १०२६ में संचेती और संवत् १०७२ में लोदा और पीपाड़ा गौत्र की स्थापना की । भी जिनेश्वरसूरि
श्री वर्धमानसूरि के शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि भी बड़े प्रतिभाशाली प्रचारक थे । इनका अमष संवत् १०६१ से लेकर संवत् ११तक का पाया जाता है। इनके समय में गुजरात के अन्तर्गत राजा दुर्लभराज राज्य करता था, उसका पुरोहित शिवशर्मा नामक एक ब्राह्मण था, जिसको आचार्यश्री मे भामार्य में पराजित किया था। दुर्लभराज के समय में अणहिलपुर पट्टन में चैत्यवासियों का बड़ा ज़ोर था। श्री जिनेश्वरसूरिजी ने इन्हें भी शाबार्य में पराजित कर अपनी विजयपताका फह
२९