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________________ मोतवाल जाति का इतिहास अमीदासजी ६ साल की उम्र से ही अपे थे। अंधे होते हुए भी आपकी पहिचान शक्ति तीन थी। कई प्रकार के सिक्कों की परीक्षा माप कर लेते थे मापके और आपके पुत्रों के नाम हुकूमतें रहीं। आपका अंत काल संवत् R९ में हुमा । भण्डारी अमीदासजी के शंकरदासजी मिश्रीदासजी हरिदासजी और गणेशदासजी मामक । पुत्र हुए, इनमें से शंकरदासजी, भण्डारी देवीदासजी के नाम पर दत्तक दिये गये । भन्डारी शंकरदासजी बाली के हाकिम थे। इनके समय तक इस परिवार के पास तोपखाने की आफिसरी का काम रहा। आपकी याददाश्त तेज थी। इनका अंतकाल संवत् १९८३ में हुआ आपके छोटे भाइयों ने राज श्री मौकरियाँ की। मापके पुत्र भण्डारी जोरावरमलजी का अन्तकाल संवत् १९९० में हुमा । इनके पुत्र सम्पत. सजली का जन्म संवत् १९४५ में हुआ। . . . भण्डारी सम्पतराजजी आरम्भ में सितही स्टेट के फोरस्ट में असिस्टेण्ट इन्स्पेक्टर थे। बाद आपने जोधपुर में वकीली परीक्षा पास कर सोजत में प्रैक्टिस शुरू की तथा इस धन्धे में हजारों रुपये आपने पैदा किये । आपने अपने पिताजी के नाम से जैनशंकर बाग नामक बगीचा बनाया। भापके हंसराजजी और धनपतराजजी नामक २ पुत्र हैं। भण्डारी हंसराजजी ने इन्दौर में बी० ए० तक * का अध्ययन किया है तथा इस समय एल एल बी का अध्ययन कर रहे हैं। __ मंडारी करणराजजी-इसी परिवार में भण्डारी करणराजजी है। आपने बहुत छोटी उमर में ही सोजत कोर्ट के वकीलों में अच्छी तरक्की की। सोजत के ओसवाल समाज में जो सालों से धड़े बन्दियाँ थीं, उसे कोशिश करके करणराजजी ने एक करवा दिया । इस सफलता के उपलक्ष्य में ज्युडिशियल सुपरिष्टेण्डेण्ट सोजत ने इन्हें सार्टिक्रिकेट दिया। परवरी १९५० में सोजत के वस्तार में बहुत बीमार एकत्रित हो गवे, तब भण्डारी करणराजजी मे उदारता पूर्वक वर्तन मादि के द्वारा उनकी सहायता की। इसके उपलक्ष्य में प्रिन्सीपल मेडिकल मॉरिसर ने खुद भी धन्यवाद दिया तथा जोधपुर दरवार को लिखा, जिससे वाइस प्रेसीडेण्ट कौंसिल मे १४-३-३. के दिन सार्टिफिकेट मेज कर करणराजजी का उत्साह बढ़ाया । आप बड़े मिलनसार तथा उत्साही सजन है । इस समय जाप सोजत कोर्ट में वकील का कार्य करते हैं। श्री दुलीचन्दजी भंडारी, सादड़ी (गोडवाड़) यह खूणावत भण्डारी परिवार सादड़ी (गोडवाइ) निवासी श्वे० जैन मन्दिरमार्गीय आन्नाथ का मानने वाला है। भण्डारी फूलचन्दजी ने सादड़ी में 1० भठाई राणकपुरजी का मेला मादि कई कार्य का ध्यान में नाम पाया। १९५० में पाप गुजरे। भापके पुत्र जसराजजी तथा सरदारमलजी भाप
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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