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________________ बड़ा खेद हुआ। लेकिन उस समय उनके सामने प्रधान लक्ष्य राज्य की रक्षा करना था, अतः वे कैद से रिहा होते ही समझौते के प्रयत्न में लग गये, जिसका विवरण पहले दिया जा चुका है। इसके थोड़े ही दिनों बाद भण्डारी गंगारामजी ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ भारी फौज लेकर बीकानेर पर चढ़ाई की। वहाँ के महाराजा सूरतसिंहजी ने इन्हें साद तीन लाख रुपये देने का पायदा किया, तब ये वहाँ से वापस लौट भाये। इसी तरह मापने नवाब मीरखा तथा लोदा शाह कल्याणमलजी के साथ पोकरण पर चढ़ाई की। वहाँ के ठाकुर से एक लाख रुपयों की आपने कबूलियत लिखवाई। भंडारी गंगारामजी तथा सिंघवी इन्द्रराजजी का प्रेम-ये दोनों मुसुदी मामा तथा भानेज थे। भण्डारी गंगारामजी मेधावी, दूरदर्शी और बहादुर प्रकृति के नरवीर थे। इनके विषय में यह कहना अत्युकि न होगी कि भण्डारी गंगारामजी का मस्तिष्क और सिंघवी इन्द्रराजजी का साहस इनके काम्यों ब्रो सफल करने में सार्थक हुआ। इनके विषय में इस प्रकार का पच प्रचलित है कि इंद को फंद गंग जाणे, ने गंग को गोविंद जाणे। जयपुर, बीकानेर भादि की विजय के पश्चात् सिंघवी इन्द्रराजजी रियासत के दीवान बनाये गये। उनके सम्मान और अधिकार में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। ऐसे समय में उनको भण्डारी गंगारामजी की शुदाई बहुत ही ज़्यादा अखरी। कहा जाता है कि भण्डारी गंगारामजी को तत्कालीन राजनीति पर बड़ा । असंतोष हुआ। अपने बदले में अपने पुत्र को कैद में रखे जाने का उन्हें बड़ा सदमा हुआ, और वे अपना अन्तिम समय हरिद्वार में बिताने के लिए रवाना हो गये। इस प्रकार महाराजा विजैसिंहजी, महाराजा भीवसिंहजी तथा महाराजा मानसिंहजी इन तीन नरेशों के राजस्व काल में रियासत की तन मन से सहायता करते हुए इस वीर पुङ्गव ने अपने जीवन के अन्तिम दिन हरिद्वार में ही विताये तथा धार्मिक जीवन बिताते हुए वहीं आपका स्वर्गवास हुआ। __ भंडारी भवानीरामजी-आप भण्डारी गङ्गारामजी के पुत्र थे। संवत् १८६३ में भापको अपने पिताजो के साथ कैद हुई तथा जोधपुर के रक्षार्थ उनके छोड़े जाने पर आपको उनके एवज में कैद रखा। जयपुर विजय के बाद आप छोड़े गये तथा उस समय भण्डारो गंगारामजी को जोधपुर परगने का बाद नामक गांव जागीर में दिया गया। यह गांव इनके अधिकार में संवत् १४.९ तक रहा। पीछे उनको परबतसर परगने का बेसरोली गाँव जागीरी में मिला, जो इनके पास संवत् १८८५ तक रहा। ये भी जोधपुर राज्य की सेवाएँ करते रहे। (१) सिंघवी इन्द्रराजजी। (२) भण्डारी गङ्गारामजी । (३) भगवान्, श्वर । १४५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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