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भयहारी
सम्बत् १७०१ में भंडारी सीबसीजी मे आपको मारोठ, परबतसर, केकड़ी आदि परगमों पर अधिकार करने के लिये भेजे ।
सम्वत् १७६९ में आपने जोधपुर राज्य की ओर से डीडवाणा मुकाम पर मुगलसेना से सामना किया और उसमें विजय प्राप्त की । सम्बत १७०१ के मिगसर मास में आप गुजरात के सूबे पर अमल करने के लिये भेजे गये और उसमें आपको सफलता मिली । सम्बत १७७१ में महाराजा ने बादशाही मुसाहिब नाहरवां को मरवा दिया। इससे बादशाह बढ़ा क्रोधित हुआ और उसने हुसेनभलीखां के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। सवाई जयसिंहजी भी अपने बहुत से उमरावों के साथ शाही सेना में मिल गये । भंडारी विजयसिंहजी शाही सेना से मुकाबला करने के लिए प्रस्तुत हो गये । अन्त में सन्धि हो गई और शाही सेना वापस लौट गई ।
सम्बत १७४५ में जोधपुर महाराणा को बादशाह से अहमदाबाद का सूवा मिला, लेकिन वहाँ के गाव मे इनसे कहा कि "सूवा कागजों से नहीं, तलवारों से मिलता है" इस समय महाराजा बहुतसी सेना लेकर अहमदाबाद पर चढ़ दौबे, उस समय लड़ाई में एक मोर्चे का मुखिया भंडारी विजेराजजी को तथा २ मोचों का मुखिया इनके भतीजे भंडारी गिरधरदासजी तथा भंडारी रखसिंहजी को बनाया । संवत १०८० की आसोज सुदी १० को भारी लड़ाई हुई और इसमें दरबार की विजय हुई और इन्होंने शत्रु कीबन्दूकें तथा हाथी छीन लिये। संवत् १७८१ में भंडारी विजबराजजी को मारोठ तथा परवतसर का हाकिम बनाया और सिरोपाव प्रदान किया ।
संवत् १७८७ के अषाढ़ मास में मराठे १० हजार फौज लेकर चौथ लेने के लिए मारवाद पर चढ़ आये, तब मारोठ की फौज लेकर भंडारी विजेराजजी ने उनका सामना किया। इसी प्रकार संवत १७८९ के फाल्गुन में मराठों ने ७० हजार फौज से पुनः चढ़ाई की, उस समय भंडारी विजयराजजी तथा रत्नसिंहजी मे मारोठ और परवतसर की सेना से तथा मनरूपजी ने और मूल्मजीवराज ने सोजत की सेना से मुकाबिला किया। थोड़ी लड़ाई के बाद चौथ के २ लाख रुपये लेकर मराठे वापस हो गये । संवत् १७८७ के माथ मास में बाजीराव फौज लेकर अहमदाबाद पर चढ़ आये। उस समय मंडारी विजेराज उनके सामने भेजे गये। सम्वत् १७९२ में भंडारी विजेराजजी सरसा भाटमेर की ओर फौज लेकर गये। इस प्रकार आपने अनेकों फौजों तथा लड़ाइयों में योग दिया। आपके बड़े भ्राता उदयकरणजी के गिरधरदासजी, रतन - सिंहजी तथा भीमसिंहजी नामक ३ पुत्र हुए ।
भंडारी गिरधरदासजी आप १७८२ में मेड़ते के हाकिम थे । आप गुजरात और मारवाद की कई लड़ाइयों में अपने छोटे बन्धु भंडारी रतनसिंहजी और काका विजेराजनी के साथ युद्धों में भाग केले
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