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भंडारी
इन्होंने लगभग बीस हजार पृष्टों का एक विशाल अंग्रेजी हिन्दी कोष लिखा है। डॉक्टर गंगानाथ झा, सर पी० सी० रॉप, डाक्टर राधाकुमुद मुकर्जी, डॉक्टर वुलमर आदि कई अन्तर्राष्ट्रीय कीर्ति के विद्वानों ने इस ग्रन्थ को भारतीय साहित्य का अटल स्मारक कहा है। इसके अतिरिक्त बॉम्बे कॉनिकल, पायोनियर, ट्रिब्यून आदि प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिकों ने इसे भारतीय साहित्य का सबसे बड़ा प्रयत्न कहा है। "प्रताप" "भारत" "स्वतन्त्र” 'भारतमित्र' 'भभ्युदय' आदि बीसों पत्रों ने इस प्रन्थ के महत्व और उपयोगिता पर सम्बे-लम्बे सम्पादकीय लेख लिखे हैं । इस कोष के काम को श्रीमान् वाइसराय महोदय ने “महान् प्रयत्न कहा है और उसके लिये हर प्रकार की सहायता का ऑफर दिया है।
ईसवी सन् १९२०-२१ के राजनैतिक आन्दोलन में भी इन्होंने भाग लिया था। इसी साल पे ऑल इण्डिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गये। यहाँ यह बात ध्यान में रखना चाहिये कि देशी राज्यों में सबसे पहले ईसवी सन १९२० में इन्दौर में इन्होंने कांग्रेस कमेटीको स्थापना की और इसका सत्तर इनके मकान हो पर रहा। इन्दौर में प्रजा परिषद होने के लिये इन्होंने "मल्लारि मार्तण्ड विजय" में जो भान्दोलन उठाया और वहाँ धूमधाम से परिषद हुई। नागपुर कांग्रेस के समय देशी राज्यों की प्रमा के उत्थान के लिये राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना हुई जिसके सभापति श्रीयुत राजा गोविंदलालजी पीती, प्रधान मन्त्री श्रीयुत कुंवर चांदकरणजी शारदा तथा संयुक्त मन्त्री श्रीसुखसम्पतिरापजी चुने गये। इस समय आपका विशेष समय साहित्य सेवा ही में जा रहा है।
- जसराजजी के दूसरे पुत्र श्री चन्द्रराजजी का जन्म सम्बत १९५९ के कार्तिक सुद को हुभा। सम्बत १९०६ में इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद परीक्षा पास की। इसके बाद ये साहित्य सेवा में लगे। इन्होंने करीब १५ महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जिनमें भगवान् महाबीर और समाज विज्ञान का बड़ा आदर हुआ यह ग्रन्थ हिन्दी साहित्य सम्मेलन की उत्तमा परीक्षा के पाठ्य क्रम में नियत है और इस पर इन्दौर की होलकर हिन्दी कमेटी ने स्वर्ण पदक प्रदान किया है भगवान महावीर की पं० लालन और लाला हरदयाल सरीखे प्रतिष्ठित विद्वानों ने बड़ी प्रशंसा की। समाज विज्ञान को डा गंगानाथमा इत्यादि हिन्दी के कई प्रख्यात विद्वानों ने अपने विषय का अपूर्व अन्य कहा और हिन्दी के प्रायः सब समाचार पत्रों ने इसकी बड़ी ही अच्छी समालोचना की । कुछ पत्रों में तो इस ग्रन्थ के महत्व पर स्वतन्त्र लेख प्रकाशित हुए। 'विशाल भारत' 'माधुरी' 'सुधा' 'चाँद' और “वीणा" नामक मासिक पत्रों में इनके कई विचारपूर्ण लेख प्रकाशित होते रहते हैं। इन्होंने अपने कुछ मित्रों के सहयोग से भारतीय व्यापारियों का इतिहास नामक महाविशाल अन्य प्रकाशित किया, जो तीन बड़ी-बड़ी जिल्दों में है हाल में इन्होंने "संसार की भावी संस्कृति" नामक ग्रन्थ लिखा है जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा।