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भोसवाल जाति का इतिहास
पूछने के लिये गये और उन्होंने इनके पुण्य के लिये ४०००) धर्मार्थ में बाँटे । पीछे सम्वत् १८०७ की कार्तिक खुद १४ को मनरूपी दीपाबड़ी नामक गांव में स्वर्गवासी हुए ।
भण्डारी सूरत रामजी - आप भण्डारी मनरूपजी के ज्येष्ठ पुत्र थे । सम्वत् १७९९ के कार्तिक मास में दरबार ने इन्हें फ़ौज़ देकर अजमेर की ओर भेजा। आपने अजमेर, राजगढ़, भीनाय, रामसर आदि स्थानों पर अधिकार किया। इन स्थानों पर जयसिंहजी के जो हाकिम थे, वे भाग गये। उनके स्थान पर जोधपुर के हाकिम रखे गये। इसके बाद सम्बत् १८०४ में भण्डारी सूरतरामजी जोधपुर के हाकिम बनाये गये । महाराजा रामसिंहजी सम्वत् १८०६ की श्रावण सुदी १० को जोधपुर के राज्यसिंहासन पर बिराजे और उसी दिन आपने भण्डारी सूरतरामजी को दीवानगी के पद पर नियुक्त किया। उक्त पद के कार्य संचालन में भण्डारी थानसिंहजी के पुत्र ( खींवसीजी के पौत्र ) भण्डारी दौलतरामजी भी सम्मिलित ये । इस पद पर आप लोग सम्वत् १८०७ की आसोज सुदी १० तक रहे। इसी साल के कार्तिक मास में सूरतरामजी और दौलतरामजी आदि को क़ैद हुई और सवा लाख रुपये की कवुलियत करवा कर ये छोड़े गये । जब १८०७ में राजाधिराज बख़्तसिंहजी ने जोधपुर पर अधिकार किया उस समय भण्डारी दौलतरामजी उनके ख़ास मुसाहिबों में से थे ।
मनरूपजी के दूसरे पुत्र मलुकचन्दजी के खींवसीजी की हवेली में मारे जाने का हाल हम पहले दे चुके हैं। मनरूपजी के वंश में इस वक्त भण्डारी मकतूलचन्दजी हैं, जो इस वक्त जोधपुर में वकालात करते हैं । भण्डारी दौलतरामजी - आप भण्डारी थानसिंहजी के पुत्र थे । जब महाराजाधिराज बख़्तसिंहजी सम्वत् १७९० में अहमदाबाद से जोधपुर लौटे तब दरबार ने आपको अपने हाथी के हौदे पर बैठाया और रुपयों की उछाल करवाई । सम्वत् १७९९ में आप जोधपुर के हाकिम हुए । सम्वत् १८०४ के भादवा में मनरूपजी के दीवान होने पर आपको सूबेदारी, बैठने का कुरूब और पालकी, सिरोपाव इनायत हुआ । सम्वत् १८०७ की वैशाख बदी ९ के दिन एक लड़ाई में भण्डारी दौलतरामजी के हाथ पर तीर लगा और उनका घोड़ा मारा गया । सम्वत् १८१२ की ज्येष्ठ सुदी १५ को भण्डारी दौलतरामजी तथा उनके छोटे भ्राता हिम्मतरामजी, भण्डारी अमरसिंहजी के पुत्र भण्डारी जोध सिंहजी और भण्डारी सूरतरामजी को क़ैद से मुक्त किया गया । सम्बत् १८१७ की वैशाख सुदी १२ को भण्डारी. दौलतरामजी का स्वर्गवास हुआ। उनकी धर्मपत्नी उनके साथ सती हुई ।
भण्डारी भवानीरामजी - आप भण्डारी दौलतरामजी के पुत्र थे । सम्वत् १८१३ की श्रावण बदी १२ को आप जोधपुर राज्य के फौजबख्शी ( प्रधान सेनापति ) के उच्चपद पर अधिष्ठित किये गये । आपने कई वीरोचित कार्य्यं किये ।
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