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________________ भासवान नाति का इतिहास उन्हें बड़ी तसल्ली दी। इतना ही नहीं खींवसीजी के शोक में एक दिन तक नौक्त बन्द रखी गई। बादशाह ने भी बढ़ा दुःख प्रकट किया। - भण्डारी अमरसिंह भण्डारी खींवसीजी के स्वर्गवास होने के बाद महाराजा बख्तसिंहजी मे उनके पुत्र भण्डारी अमरसिंहजी को दीवानगी का सिरोपाव, बैठने का कुरुब, पालकी, हाथी, सरपंच, मोतियों की कण्ठी और जड़ाऊ कड़ा आदि देकर उन्हें सम्मानित किया। इसी समय महाराजा ने दूसरे दीपावत भण्वारियों को भी विविध पदों से विभूषित किया। । सम्बत् १७८६ के कार्तिक मास में महाराजा जोधपुर गढ़ में दाखिल हुए, उस समय भण्डारी अमरसिंह देहली में थे। इन्होंने वहाँ से १५ लाख रुपया निकलवा कर भेजे, जिससे महाराजा ने अहमदाबाद दूर करने की तैयारी की। अहमदाबाद फतह होने के बाद भण्डारी अमरसिंह सम्वत १७४. से १५४९ तक गुजरात के नडियाद प्रान्त के शासक रहे। - सं० १७९२ में सूरत का सूवा दस हजार फौज लेकर अहमदाबाद पर चढ़ आया । अमरसिंहजी और रखसिंहजी ने उसका मुकाबला किया। सूबा सरायतखाँ इस युद्ध में मारा गया और उसकी फौज भाग गई इस लड़ाई में रखसिंहजी के चार घाव लगे। सम्बत् १०९२ में भण्डारी अमरसिंहजी जब दिल्ली गये तब बादशाह ने आपकी बड़ी खातिर की और भापको सिरोपाव प्रदान किया । सम्बत् १७९३ में महाराजा ने आपको रायाराव की सम्मान्नीय उपाधि से विभूषित किया। सम्वत् १८.1 तक आप दीवान के उच्च पद पर अधिष्ठित रहे। सम्वत् १८०२ में अमरसिंहजी का मारोठ में स्वर्गवास हुआ। इस समय महाराज नागोर में विराजते थे। उन्हें अमरसिंहजी की मृत्यु से बड़ा दुःख हुआ। उनके शोक में एक वक्त के लिये नौबत का बजना बन्द रखा गया इतना ही नहीं आप अमरसिंहजी के भतीजे चौलतरामजी और चचेरे भाई मनरूपजी डेरे पर मातमपुर्सी के लिये भी पधारे। थानसिंहजी-आप भण्डारी अमरसिंहजी के भाई थे । मापने भी जोधपुर राज्य में विभिन्न पदों पर काम किया। आपने महाराजा अजितसिंहजी के हुक्म से सांभर में नाहरखाँ के ऊपर हमला कर उसे तलवार के घाट उतारा था। आप अपनी हवेली में एक राजपूत सरदार के द्वारा मारे गये। आपके दौखतरामजी और हिम्मतरामजी नामक दो पुत्र थे। पोमसिंहजी-आप भण्डारी खींवसीजी के बड़े भ्राता थे। सम्बत् १७६५.६६ में आप जालोर के हाकिम बनाये गये । सम्बत् १७६६ में भण्डारी पोमसिंह ने देवगाँव पर फौजी पढ़ाई की और १५०००) रुपये पेशकशी के लेकर वापस लौट आये। जब मराठों ने मारवाद पर चढ़ाई की और उन्होंने जालोर के १२०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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