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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास बहादुर महामहोपाध्याय पं० गोरीशंकरजी ओझा अपने सिरोही के इतिहास के पृष्ठ १६९ में लिखते हैं:"राव लाखणी बड़ा बहादुर हुआ वर्तमान जोधपुर राज्य का कितना ही हिस्सा इसने अपने आधीन कर लिया था । " भण्डारियों की हात में रात्र लाखणजी के बारहवें पुत्र रावं दुदाजी से भण्डारियों की उत्पत्ति बतलाई है। उसमें लिखा है कि: “ नाडोल के राव लाखणसी के चौबीस रानियाँ थीं, पर उनमें से किसी के सन्तान नहीं हुई। प्रसंगवश जैनाचाय्यं श्री यशोभद्रसूरि नाडौल पहुँचे। राव छाखणसी ने आपका बड़ा सरकार किया। राव-लाखणजी ने निःसन्तान होने के कारण आपके आगे दुःख प्रकट किया और आचार्यवर्य को इस सम्बन्ध में शुभाशीष देने के लिये निवेदन किया। इस पर आचार्य श्री ने उत्तर दिया कि तुम्हारी प्रत्येक रानी के एक एक पुत्र होगा। तुम अपने चौबीस पुत्रों में से एक पुत्र को हमारे हवाले करना । राव लाखणसी ने यह बात स्वीकार करली। सौभाग्य से रावजी की प्रत्येक रानी को एक एक पुत्र हुआ। इनमें बारहवें पुत्र का नाम दूदाराव था । इन्हें आचार्य श्री ने जैनी बनाया। राज्य के खजाने का काम दूदारावजी के सिपुर्द था, इससे ये भण्डारी कहलाये । यह घटना सम्बत १०३९ की है। पहले तो यह कि भण्डारियों और उपरोक्त वर्णन में अतिशयोक्ति हो सकती है, पर यह निश्चय है कि भण्डारियों की उत्पत्ति नाडोल के चौहानों से हुई। इसके लिए कई प्रबल प्रमाण हैं। चौहानों की कुलदेवी आसापुरीजी है। आसापुरी माता का मन्दिर बच्चों का झडला उतारा जाता है । नाडौल में है, जहाँ भण्डारियों के अब हम भण्डारियों के उपलब्ध इतिहास के सम्बन्ध में जो कुछ ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त हुई है, उसी के आधार पर नीचे कुछ प्रकाश डालते हैं । समराजी - भण्डारियों के वंशवृक्ष में सबसे पहला नाम राव समराजी भण्डारी का है। आपने और आपके पुत्र राव नरोजी ने जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी को उनकी अत्यन्त संकटावस्था में किस प्रकार सहायता की और किस प्रकार राव समराजी राव जोधाजी की रक्षा के लिए मेवाड़ की सेना से लड़कर काम आये और उनके पुत्र नरोजी ने अन्त तक अनेक विपत्तियों को सहकर किस प्रकार संकटग्रस्त राव जोधाजी का साथ दिया इसका वर्णन हम "भोसवालों के राजनैतिक महत्व" नामक अध्याय में दे चुके हैं। इससे अधिक आपके सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक तथ्य खोजने पर भी नहीं मिला है। इसलिए यहां हम भण्डारियों की जुदी जुदी खांपों ( शाखाओं) का परिचय देते हैं। १२०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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