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________________ औसवाल जाति का इतिहास ___ सेठ चुन्नीलालजी सिंघवी के बाद उनके पुत्र श्रीचन्दजी सिंघवी ने इस दुकान को सम्पत्ति को विशेष बदाया। आपका जन्म संवत् १९३५ में हुआ। आपके यहाँ रुई के व्यापार का काम भौर लेनदेन का व्यापार होता है, तथा इस समय आप लोनार के प्रमुख सम्पत्तिशाली समझे जाते हैं। भापके पुत्र सुगनचन्द व मदनलाल हैं। सिंपकी पाताकत सिंघवी ताराचन्दजी कोठारी, आहोर ( मारवाड़) पातावत सिंघवी खानदान का निवास भी बनवाणा बोहरा जाति से बतलाया जाता है। कहा जाता है कि डीसा से १२ कोस ढीलड़ी गाँव में टेलडिया बोहरा आसधवलजी रहते थे। इनको जैनाचार्य श्रीचन्द्र प्रभू सूरिजी ने जैन धर्म अंगीकार कराया। आसधवलजी की पीढ़ी में कुंवरपालजी ने संघ निकाला, अतएव इनका कुटुम्ब सिंघवी कहलाया । इनकी कई पीढ़ियों बाद पाताजी हुए, जिनकी संतानें पातावत सिंघवी कहलाई । ये भी नागपूजक सिंघवी हैं पाताजी की कई पीढ़ियों में सिंघवी दीपराजजी हुए थे और इनके पुत्र कल्याणजी भी आहोर ठिकाने में काम करते रहे, ठिकाने का काम करने से ये कोठारी कहालाये। कल्याणजी के डूंगरमलजी तथा लखमीचन्दजी नामक २ पुत्र हुए। लखमीचन्दजी संवत् १८७० में ठाकुर अनाड़सिंह जी के साथ कोटा की ओर गये । इस समय लखमीचन्दजी का कुटुम्ब सारथल ( कोटा के पास ) रहता है। लखीमचन्दजी के बड़े भाई दूंगरमलजी, ठाकुर भनाइसिंहजी के बड़े पुत्र शक्तिसिंहजी के यहाँ कार्य करने लगे। डूंगरमलजी के पुत्र हरखचन्दजी १९५० में गुजरे इनके पुत्र अखेचन्दजी, रतनचन्दजी तथा ताराचन्दजी हुए। इनमें सिंघवी ताराचन्दजी विद्यमान हैं। सिंघवी ताराचान्दजी का जन्म संवत् १९३५ में हुभा। आपने बहुत समय तक आहोर ठिकाने का काम किया। भाप समझदार तथा प्रतिष्ठित सज्जन हैं। कोठारी अखेचन्दजी ने ठाकुर रावतसिंहजी की नाबालगी के समय ठिकाने का कार्य सम्भाला था, अभी इनके नाम पर ताराचंदजी के पुत्र नेनचन्दजी दसक हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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