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श्रीसवाल जाति का इतिहास
इन्होंने बड़े-बड़े ओहदों पर काम किया, पृथ्वीमलजी के विजेमलजी तथा दीपकजी नामक २ पुत्र हुए। विजेमलजी के बख्तावरमलजी या वज्रतमकजी, वसत्तमलजी, जोधमलजी, तथा जीवणमलजी नामक ४ पुत्र हुए, और दीपचन्दजी के मनरूपमलजी, इन्द्रभाणजी, चन्द्रभाणजी, उदयभाणजी तथा राजभाणजी नामक ५ पुत्र हुए ।
सिंघवी बख्तावरमलजी और तखतमलजी - विजेमलजी के ४ पुत्रों में से प्रथम २ पुत्र विश्लेष प्रतापी हुए, जब महाराजा अजितसिंहजी के जमाने में मारवाड़ पर मुसलमानों का अधिकार हो गया । तो इन चारों भाइयों ने मुसलमानों के राज्य में रहना पसन्द नहीं किया और आप जोधपुर छोड़कर बीकानेर चले गये। बीकानेर महाराज श्री अनूपसिंहजी से गढ़ सगर में इनकी भेंट हुई, महाराज ने खास रुक्का देकर इन भाइयों को खातरी दिलाई। एक रुक्के में लिखा था कि
“सिंघनी नखतमख तखतम बीकानेर के सो इज्जत कायदो भली-भाँति राखजो सीरोपान दीजोः सम्बत् १७५२ रा मिनी मादना बदी १२ मुकाम गढ़सगर ।"
अब जोधपुर से मुसलमानों का कब्जा हटा, और महाराज भजितसिंहजी गद्दी पर बैठे, इस समय उनको योग्य दीवान की आवश्यकता हुई अतः सिंघवी बखतावरमळजी, तखतमकजी, जोधमळजी और जीवणमलजी को जोधपुर बुलाया और सम्वत् १७६३ में सिंघवी बस्तावरमलजी तथा तखत्तमलजी को दीवान के ओहदे का सम्मान दिया ।
सिंवची जोधमलजी ने भी कई बड़े-बड़े मोहदों पर काम किया जब सम्बत् १७८० में महाराजा श्रीसिंहजी के पास गुजरात के सूबे का अधिकार हुआ, उस समय अहमदाबाद के सब से बड़े परगने पेटलाद में सिंघवी जोधमलजी को सुबेदार बनाकर भेजा। आपने उस जिले की तीन साल की आय के ११०५०००) एकत्रित किए।
सिंघवी हिन्दूमलजी - सिंघवी चन्द्रभानजी के पुत्र हिन्दूमकजी थे। आपने सम्वत् १८३० से ३२ तक मारवाड़ राज्य की फौजबक्शी (कमॉंडर-इन-चीफ) का काम किया आपके पुत्र उम्मेदमलजी परबतसर फलोदी के हाकिम रहे। आप बहुत अच्छे फौजी आफिसर थे । सम्बत् १८६६ में आपने सिरोही की कढ़ाई में बहुत बहादुरी दिखाई और सिरोही फतहकर वहाँ पर जोधपुर दरबार का शासन कायम किया । इससे महाराजा मानसिंहजी ने आपको प्रसन्न होकर प्रशंसा का रुका जिनमें से रेहतड़ी नामक एक गाँव अब भी इनके परिवार के ताने में है। मैं ही इनका शरीरान्त हुआ ।
तथा ३ गाँव जागीर में दिये । राज्य की सेवा करते हुए युद्ध
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