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________________ बोलबाल बाति का इतिहास सिंघवी गुलराजजी रूपरानजी एवं रूपराजजी के हरसमसजी तथा जीवनमलजी नामक पुत्र हुए। हरसमलजी के पुत्र सिंघवी गणेशमलजी संवत् १९०६ में गुजरे, इसी तरह जीवनमलजी के पुत्र मेरूमलजी १९॥ में गुजरे। . सिंघवी गणेशामजी के पुत्र सुकनमाजी का जन्म संवत् १९५९ की काती वदी 1 को हुला है। भाप राज मारवाद में पोतदार है और इस समय हुकूमत बाड़मेर में काम करते हैं। सिंघवी भेरूमलजी के पुत्र मुकनमलजी और मोहनलालजी जोधपुर में व्यापार करते हैं। सिंघवी समरथमलजी का खानदान सिरोही संवत् १६५३ में इस परिवार के पुरुषों ने भाग्वा (जालोर) में महाबीर स्वामी का एक मन्दिर बनवाया तथा गिरनार और शQजय के संघ निकाल कर रूपा का कलश और थाली लाण में वाटी । इसलिये यह परिवार सिंघवी कहलाया । बहुत समय बाद रतनसिंहजी के पुत्र नारायणसिंहजी कोमता ( भीनमाल) से सिरोही भाये। इनके बाद क्रमशः खेतसीजी पचाजी और रूपाजी हुए । रूपाजी कपड़े का म्यापार करते थे। इनके पुत्र कपूरचंदनी, धनाजी, केटींगजी, लूणाजी, कछुवाजी, मलकचंदजी हुए। सिंहवी धनाजी भी कपड़े का व्यापार करते रहे । इनके समरथमलजी तथा रतनचंदजी नामक दो पुत्र हुए। सिंघवी समरथमलजी ने सिरोही में अच्छा सम्मान पाया । इनका जन्म संवत् १९१२ की माघ वदी ८ को हुआ। स्वर्गवासी होने से पहिले १५साल तक ये जेबखास के आफीसर रहे इसके साथ साथ 1. सालों तक रेवेन्यू कमिश्नर का कार्य भी इनके जिम्मे रहा । आपका प्रभाव दीवान से भी अधिक था। सन् १८९१ की ५मार्च को सिरोही दरवार महाराव केशरीसिंहजी ने इनको लिखाः-"राज साहबान जगतसिंह जी का रियासत के साथ वनाजा था उसे निपटाने तथा मटाना, मगरीवाड़े के सरहद्दी तनाजे का निपटाने में तथा हजूर साहब जोधपुर गये तब उनकी पेशवाई वगैरा के इन्तजाम में बहुत होशियारी से काम किया। संवत १९४६-१७ की सिरोही स्टेट की एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट में एडमिनिस्ट्रेटर ने इनके लिये लिखा है कि-राज के मुल्की मामजात को तय करने में इन्होन बहुत मदद दी इसके लिये मैं इनका बहुत प्रभारी हूं। इसी तरह रेजिडेंट वेस्टनं राजपूताना व सिरोही स्टेट के दीवानों ने भी सरहदी तनाजों को इदिमता पूर्वक निपटाने के सम्बन्ध में आपको भनेको सार्टिफिकेट देकर आपकी अक्लमन्दी, कारगुजारी, वफापारी और तनदेही की तारीफ की। १०१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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