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इनकी छतरी बनी हुई है, जहाँ झुझारजी की पूजन होती है और प्रत्येक श्रावण सुदी ५ को वहां उत्सव होता है। जेठमलजी के हिन्दमलजी, जोरावरमलजी, धनरूपमलजी और मानमलजी नामक ७ पुत्र हुए। इनमें सिंघवी हिन्दूमलजी, सिंघवी अनोपचन्दजी के नाम पर दत्तक आये । इन्होंने बख्शीगिरी की।
सिंघवी जोरावरमलजी--इनके पिता की मृत्यु पर दरबार ने एक दिलासा का पत्र दिया कि "......."तू किणी यातV उदास हुयजे मती......""जेठमल दरबार रे अरथ आयो चाकरी रो ऊंडो सीरछे ।"
संवत् १८१९ में सिंघवी जोरावरमलजी ने पाली नगरी आवाद की । इसी से उस समय "पाली जोरा की" इस नाम से सम्बोधित की जाती थी। संवत् १८१९ में जीतमलजी के हाथ से बचे हुए ५ बागी सरदारों को दबाने के लिए पे सोजत के हाकिम बनाकर भेजे गये। वहाँ इन्होंने पाँचों को पकड़ लिया। १८२१ में इनको १३०५) की रेख के दो गाँव इनायत हुए। सम्वत् १८२४ में इन्होंने पटायत जगतसिंह को सर किया। १८२८ में देसूरी के सोलंकी वीरमदे आदि जागीरदारों को दवाकर इन्होंने अपने चचेरे भाई खूबचन्दजी, मानमलजी, शिवचंदजी, बनेचन्दजी और हिन्दूमलजी की मदद से गोडवाड़ का परगना जमाया। १८२९ में घाणेराव चाणोद के मेड़तियों को भाधीन किया। इसी साल इन्हें गाँव मोकमपुर इनायत हुआ। दरबार की ओर से इन्हें १८४७ में बैठने का कुरुव और १८४८ में कड़ा पालकी, और सिरोपाव इनायत हुआ। इसी वर्ष फागुन सुदी ११ को आप स्वर्गवासी हुए । आपकी सन्ताने जोरावरमलोत कहलाती हैं।
सिंघवी ख़बचन्दजी-सिंघवी जोरावरमलजी के बड़े भाई विरदभानजी के शिवचन्दजी. बनेचंदजी तथा खुवचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। सिंघवी खूबचन्दजी ने बीकानेर के २०० सिपाहियों को बड़ी वीरता और कुशलता के साथ केवल १० घोड़ो से भगा दिया । इसका वर्णन कर्नल टॉड साहब ने अपने इतिहास में किया है। इसके बाद इन्होंने उमरकोट के दंगे को शांत किया तथा उसपर मारवाड़ का झण्डा फहराया। उस स्थान के हाकिम इनके भानेज लोड़ा शाहमलजी बनाये गये।
सिंघवी खूबचन्दजी बड़े मानी थे। ये मारवाड़ दरबार के सिवाय और किसी को प्रणाम नहीं करते थे। जब माधोजी सिन्धिया ने जयपुर पर चढ़ाई की और जयपुर के महाराजा प्रतापसिंहजी ने जोधपुर मे मदद मांगी; उसमें खूबचन्दजी इसीलिए नहीं गये कि जयपुर दरबार को सिर नवाना पड़ेगा। इसी एंट के कारण पोकरन ठाकुर सवाईसिंहजी ने विजयसिंहजी के पददायत गुलाबरायजी को इनके खिलाफ बहकाया और संवत १८४८ की श्रावण वदी अमावश्या को इनको षड्यन्त्र से मरवा दिया। इसी तरह