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प्रतिवाल जाति का इतिहास
सिंघवी जोरावरमलोत सिंघवी सोनपालजी का परिचय ऊपर दिया जा चुका है। इनके ६ पुत्र हुए जिनमें बड़े सिंघाजी थे। सिंघाजी के चापसीजी, पारसजी गोपीनाथजी आदि ५ पुत्र हुए। इनमें पारसजी के राणोजी हंसराजजी हरचन्दजी दुरजानजी तथा सुन्दरदासजी नामक पुत्र हुए। इन भ्राताओं में सुन्दरदास जी के ७ पुत्र हुए जिनमें छठे मूलचन्दजी थे। मूलचन्दजी के परिवार वाले मूलचंदोत सिंघवो कहलाये । सिंघवी मूलचंदजी के अनोपचंदजी खुशालचंदजी वर्द्धमानजी तथा जेठमलजी नामक ४ पुन हुए। इनमें जेठमलजी के पुत्र हिन्दूमलजी जोरावरमलजी धनरूपमलजी तथा मानमलजी हुए । जोरावरमलजी का परिवार जोरावरमलोत सिंघवी कहलाया। मूलचंदोत, जेठमलोत और जोरावरमलोत सिंघवी एक ही परिवार की शाखाएँ हैं।
सिंघवी मूलचन्दजी-ये सिंघवी सुन्दरदासजी के पुत्र थे। आप संवत् १७७२ में गुजरात के तोपखाने के अफसर होकर लड़ाई में गये और वहीं कातिक सुदी 1 को काम आये। आपकी छतरी अभी तक अहमदाबाद में मौजूद है।
सिंघवी जेठमलजी-सिंघवी मूलचन्दजी के अनोपचन्दजी, कुशलचन्दजी, विरदभानजी और जेठमलजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें अनोपचन्दजी दौलतपुर के हाकिम थे। महाराजा अभयसिंहजो के ये कृपा पात्र थे । संवत् 1611 में इन्होंने मेड़ते की लड़ाई में मदद की, फिर इन्होंने नहेड़ा तथा कागेपर का मोरचा तोड़ा, इस प्रकार अनेकों लड़ाइयों में आप सम्मिलित हुए। संवत् १८११ की चैत वदी ८ को महाराजा विजयसिंहजी ने एक रुक्का दिया उसमें लिखा था कि “तथा गढ़ ऊपर तुरकियो मिल गयो सूं चैतवद ने बारला हाको कियो. निपट मजबूती राखने मार हटाय दिया, तूं चाकरी री तारीफ़ कठा तक फरमावां” इत्यादि इस तरह के कई रुक्के मिले। इन्होंने दक्षिणियों से जालोर का किला वापिस लिया । विलाड़ा तथा भावी के आप हाकिम बनाये गये ।
चांपावत सबलसिंहजी महाराजा विजयसिंहजी से बाग़ी* हो गये थे। उन्हें दबाने के लिये संवत् १८१७ में २७ सरदारों और ४०० घोड़ों के साथ सिंघवी जेठमलजो विलाड़े पर चढ़ आये। सावण सुदी ५ को जेठमलजी शत्रु पर टूट पड़े। विरोधियों की तादाद ज्यादा थी फिर भी सवलसिंहजी और उनके २२ सरदार मारे गये, और जेठमलजी का सिर भी काट डाला गया। कहा जाता है कि फिर भी इनका धड़ लड़ता रहा। इस प्रकार ये वीर झुसार हुए। इनके झुमार होने के स्थान याने बिलाड़े के तालाब पर
* सरदार लोग महाराजा विजयसिंहजी से नाराज इसलिये होगये थे कि दरबार ने शराब की भट्टी तथा मास बेचना बंद करवा दिया था।