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मोसवाल जाति का इतिहास
दुरी और साहस से किया था। संवत् १८२१ के आश्विन मास में उज्जैन के सिन्धिया ने मारवाद पर आक्रमण करने के इरादे से कूच किवा। जब यह समाचार जोधपुर में सिंववी भीवराजजी को मिला तो उन्होंने तत्काल मन्दसोर आकर सिन्धिया को तीन लाख रुपये देकर युक्ति पूर्वक वापिस लौटा दिया। इसी प्रकार जब दक्षिण के सरदार खान ने मारवाड़ पर चढ़ाई की, उस समय भी सिंघवी भीमराजजी ने उसका सामना करने के लिए मुहणोत सूरतरामजी तथा दूसरे कई सरदारों के साथ सेना लेकर मारोठ पर डेरा किया। इस लड़ाई में खानू बहुत बुरी तरह पराजित होकर अजमेर भाग गया और उसका सामान सिंघवी भीवराजजी ने लूट लिया। इसके पश्चात् आपने वसी मामक स्थान पर घेरो डाला और वहाँ के ठाकुर मोहनसिंह से १०००० जुर्माना लेकर उसे फौज में शामिल कर लिया।
संवत् १८२४ में उदयपुर के राणा अरिसिंहजी और उनके भतीजे रतनसिंहजी में किसी कारण वागड़ा हो गया। उस समय राणा अरिसिंहजी ने महाराजा जोधपुर के पास अपना वकील भेज कर सहायता की याचना की। इस पर महाराज ने सिंघवी इन्द्रराजजी और सिंघवी फतेराजजी ( रायमलोत) को सेना देकर उदयपुर भेजा जब रतनसिंहजी को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने इन्हें खर्च देकर वापिस कर दिये । संवत् १८२० में महाराणा अरिसिंहजी ने जोधपुर दरवार को गोड़वाद प्रान्त दे दिया, उस समय सिंघवी भीवराजजी तथा मुहणोत सूरतरामजी ने ही बाली जाकर उस आर्डर पर अमल किया । संवत् १८२९ में जयपुर के महाराजा रामसिंहजी स्वर्गवासी हो गये उस समय सिंघवीजी ने परवतसर
हाकिम मनरूपजो को साम्भर पर अधिकार करने के लिये लिखा और पीछे से फौज लेकर आने का माश्वासन दिया।
संवत् १८२४ की फागुन वदी १० को महाराजा विजयसिंहजी ने सिंघवी भीवराजजी को वस्थीगिरी इनायत की जो संवत् १८३० तक चलती रही। उसके पश्चात् संवत् १८३२ में दरवार ने भआपको पुलाकर पुनः बक्षीगिरी का खिताब इनायत किया। भापकी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा ने छ हजार की आमदनी के चार गाँव आपको जागीर में दिये । आपके भ्राता इतिहास प्रसिद्ध सिंघवी धनराजजी भी अजमेर फतेह करते समय काम आये ।
संवत् १८३४ में जब अम्बाजी इंगालिया की फौज ढूंढाड़ (जयपुर स्टेट) को लूट रही थी तब सिंघवी भीवराजजी पन्द्रह हजार फौज लेकर जयपुर की मदद को चढ़ दौड़े। आपकी सहायता के बल से जयपुर की फौज ने मरहट्ठों की फौज को मार भगाया । उस समय जयपुर दरबार ने जोधपुर दरवार को पन्न लिखते हुए लिखा था कि “ भीवराजजी और राठौड़ वीरहों और हमारी आम्बेर रहे।''
जब बादशाह फौज लेकर रेवाड़ी आया तब जयपुर महाराज प्रतापसिंहजी १ हजार, नजबकुली