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________________ मुहणीत इस प्रकार जोरावरसिंह को मुंडवें में महाराज के पास हाजिर किया । फिरखाटू पर चढ़ाई करके वहां के ठाकुर को भगा दिया। इससे प्रसन्न हो दरवार ने इनको खास रुक्का दिया । संवत् १९९९ से ३१ तक दीवानगी का कार्य फिर मेहताजी के पास रहा। __ संवत् १९२९ की माघसुदी १५ को जब महाराजा तख्तसिंहजी स्वर्गवासी हुए और उनके स्थान पर महाराजा यशवन्तसिंहजी गद्दी पर बैठे उन्होंने भी मेहताजी की दीवान पदवी कायम रक्खी और उन्हें सुवर्ण का पाद भूषण और ताजीम दी। संवत् १९३३ की माघ सुदी १५ को दरवार ने मेहताजी को दीवानगी का अधिकार सौंपा जिसे आप आजन्म करते रहे। संवत् १९३४ की चैत वदी को गवर्नमेंट ने प्रसन्न होकर आपको रायबहादुर का सम्मान दिया। संवत् १९४६ में परगने जोधपुर के बीरडाबास और बिरामी नामक गाँव जो संवत् १९३२ में खालसे हो गये थे पुनः इन्हें जागीरी में मिले। इस प्रकार प्रतिष्ठा पूर्वक जीवन बिताते हुए भाप संवत् १९४९ की भादवा वदी १२ को स्वर्गवासी हुए। आप अपनी आमदनी का दशांश धर्म कायों में लगाते थे। दरिद्र तथा बाल विधवाओं को गुप्त सहायता पहुंचाया करते थे। .. आप विशिष्टाद्वैत वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे। आपने फतेसागर के उत्तरी तट पर श्री रामानुज कोट का मन्दिर बनवाचा और वहां कूप तथा कूपिका बनवाई इसके अलावा आपने फतहसागर को गहरा तथा मजबूत करवाकर उसका सम्बन्ध कागड़ी के पहाड़ों से तथा गुलाब सागर में भानेवाले बरसाती पानी से करा दिया। १९४६ में रामानुज कोट में आपने दिव्य देश नामक मन्दिर बनवाया। इस मन्दिर की सुव्यवस्था के लिये स्थायी प्रबन्ध है जो एक कमेटी द्वारा संचालित होता है। मेहता सरदारसिंहजी-आपका जन्म संवत् १८७५ की कातीवदी १४ को हुभा । संवत् १९१९ में आपको दरबार ने जालोर की हाकिमी और मोतियों की कंठी तथा कड़ा भेंट किया। संवत् १९२० के फाल्गुन सुदी ४ को आप नागोर के हाकिम बनाये गये ।संवत् १९२८ में जब स्वयं महाराजा तथा पोलिटिकल एजंट फौज लेकर नागौर पर चढ़े थे, उस समय उन्होंने उस परगने की हुकूमत आपको दी थी रायबहादुर मेहता विजयसिंहजी के स्वर्गवासी होजाने पर उनके स्थान पर संवत् १९४९ की भादवासुदी १३ को भाप दीवान बनाये गये इस प्रतिष्ठित पद पर आप जीवन भर काम करते रहे। आपका स्वर्गवास आषादसुदी " संवत् १९५८ को हुआ । जोधपुर स्टेट के ओसवाल समाज में सबसे अंतिम दीवान भाप ही रहे। सन् १८७८ में जब श्री सिंह सभा की स्थापना हुई उस समय जोधपुर के भोसवाल समाज की ओर से आपको उस सभा के प्रथम सभापति का सम्मान प्राप्त हुआ था आपने उसके लिए २४००) की सहायता भी भेंट की थी। ५९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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