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भरणोत मरसिंहदासजी कृष्णसिंहजी, फोजसिंहजी हुए । नरसिंहजी कारखाने जात का काम करते रहे फोजसिंहजी उदयपुर तथा किशनगढ़ स्टेट के हाकिम रहे। अभी फोजसिंहजी के पुत्र उदयसिंहजी विद्यमान हैं।
राय बहादुर मेहता विजयसिंहजी का खानदान जोधपुर इस प्रतिष्ठित कुटुम्ब का विस्तृत परिचय ऊपर किशनगढ़ के इतिहास में दे चुके हैं। इसी परिवार के मेहता आसकरणजी के पुत्र मुहणोत देवीचन्दजी रूपनगर महाराजा के दीवान थे। इनके पुत्र चैनसिंहजी, महाराजा प्रतापसिंहजी किशनगढ़ के दीवान रहे। इनके पुत्र करणसिंहजी संवत् १८६१ से. तक किशनगढ़ राज्य के मन्त्री और १८९६ तक दीवान रहे । अपने समय में इन्होने मरहठा, सिंधिया और अजमेर के इस्तमुरारदारों से कई युद्ध किये। संवत् १८९६ में भापका शरीरान्त हुआ। .
मेहता करणसिंहजी के मोखमसिंहजी, विजयसिंहजी तथा छतरसिंहजी नामक ३ पुत्र हुए। मेहता मोखमसिंहजी संवत् १८९६ से १९०८ तक किशनगढ़ स्टेट के दीवान रहे।
मेहता विजयसिंहजी-आपका जन्म संवत् १८६३ की पौष वदी ५ को हुआ। बाल्यावस्था से ही आप बड़े होनहार प्रतीत होते थे। संवत् १८८० में भीमनाथजी महाराज ने जोधपुर नरेश से इनका परिचय कराया। महाराजा ने इन्हें होनहार जान भपने पास बुला लिया, तब से मेहता विजयसिंहजी जोधपुर रहने लगे।
संवत् १८४८ में बगड़ी ठाकुर जैतसिंहजी व शिवनाथसिंहजी दरबार के विरोधी हो गवे, उनको दबाने के लिए फौज के साथ विजयसिंहजी भेजे गये, वहाँ इन्होंने अच्छी बहादुरी दिखाई, इसलिये लौटने पर दरबार ने इन्हें जेतारण परगणे का आरसलाई गाँव इनायत किया।
संवत् १९०३ में मेहता विजयसिंहजी ने कणवाई (डीडवाना) के डाकुओं को तथा धनकोली (डीडवाणा ) के विद्रोही ठाकुर को बड़ी बहादुरी से दबाया इसी साल मापने खाटू ( नागोर) पर चढ़ाई कर जोधसिंह की जगह भीमसिंह को गही पर बिठाया। कुछ ही दिनों बाद इसी साल शेखावाटी प्रोत के २ बड़े जोरावर लुटेरे दूंगरसिंह और जवाहरसिंह नागरे के किले से भाग गये और मसीराबाद छावनी का खजाना लूट कर मारवाड़ प्रांत में आगये जब ए० जी० जी० ने महाराजा को उन्हें पकड़ने के लिये पत्र भेजा तब महाराजा जोधपुर ने मेहता विजयसिंहजी, सिंधवीकुशलराजजी और किलेदार अमाइसिंहजी को फौज देकर डाकुओं के पकड़ने के लिये भेजा। थोड़े समय बाद ए. जी. जी ने अपने नायब ई० एच० मोक्मेसन और कप्तान हाई केसल को मारवाद की सेना के साथ भेजा इस फौज के साथ मारवाद के और भी