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श्रो सवाल जाति का इतिहास
भी उद्धृत किये हैं, जो डिंगल भाषा में हैं । उनका समझना तो कहीं-कहीं और भी कठिन है । मुहणोत सुन्दरसीजी
उनमें से कुछ तो ३०० वर्ष से भी अधिक पुराने हैं ।
आप जयमलजी के तीसरे पुत्र और नैणसीजी के भाई थे। शनिवार को आपका जन्म हुआ। महाराजा यशवन्तसिंहजी ने सं० (Private Secretary ) का पद प्रदान किया. । सम्वत् १७२३ तक आप इस पद पर रहे । सम्बत् १७१३ में सिंघलबाग पर महाराजा जसवन्तसिंहजी ने फौज भेजी । उक्त सिंधळबाग अपनी फौज सहित लड़ने को तैयार बैठा था । महाराजा की फौज में ६९१५ पैदल थे, जिनके दो विभाग किये गये। पहले विभाग का सेनानायकत्व राठौड़ लखधीर विट्ठलदासोत को दिया गया। दूसरे विभाग का जिसमें ३३७२ सैनिक थे, सञ्चालन भार मुणोत सुन्दरसी पर रखा गया। सिंधलों और महाराजा की फौजों में लड़ाई हुई, जिसमें महाराजा की फौजों की विजय हुई। संवत् १७२० में महाराजा जसवन्तसिंहजी की सेवाने बादशाह औरङ्गजेब की ओर से प्रातःस्मरणीय छत्रपति शिवाजी पर चढ़ाई की। कुँडा के गढ़ पर बड़ाई हुई। इस युद्ध में सेना के आगे रह कर मुहणोत सुन्दरसी बड़ी बहादुरी से लड़े थे । वे इस युद्ध में जमी हुए। पर इसमें गढ़ पर से महाराजा की फौज पर इतने भयङ्कर गोछे बरसे कि उनकी फौज को पीछे हटना पड़ा ।
सम्वत् १७१४ में पांचोंटा और कंबला के सरदारों ने महाराजा के खिलाफ विद्रोह किया, जिसे सुन्दरसीजी ने दबाया ।
सम्वत् १७१६ में महाराजा जसवन्तसिंहजी गुजरात के सूबे पर थे। वहाँ से उन्होंने महाराज कुमार श्री पृथ्वीसिंहजी को बादशाह के हुसुर में भेजे। उनके साथ सुन्दरसीजी और राठौड़ भीमसिंहजी गोपालदासोत को भेजे ।
सम्बत् १६६८ की चैत्र सुदी ८ १७११ में आपको “तन दीवानगी"
महाराजा जसवन्तसिंहजी की कई पासवानें औराङ्गाबाद थीं । उन्हें लेने के लिये महाराजा ने पूजे के मुकाम से सम्वत् १७२० की अषाढ वदी ५ को सुदरसीजी को भेजा और उनके साथ २१०० सवार दिये । मार्ग में शिवाजी के ५०० सवार इनके साथवाली बैलों की जोड़ियाँ पकड़ ले गये । सुंदरसीजी ने उनका पीछा किया । लड़ाई हुई और सुंदरसीजी ने बैलों की जोड़ियाँ छुड़ाली ।
सम्वत् १७२३ की पौष सुदी ९ को महाराजा यशवन्तसिंहजी ने किसी कारणवश नाराज होकर सुंदरसीजी से "तन दीवानगी" का पद लेलिया । सम्वत् १९२७ में आप अपने भाई नैणसीजी के साथ पेट में कटारी खाकर वीरगति को प्राप्त हुए, जिसका उल्लेख नैणसीजी के वृतान्त में दिया गया है।
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